Friday 17 February 2017

लालोजी मेहड़ू


.                        *लालोजी मेहडू*

लालोजी मेहडू शाखा में उत्पन्न हुए थे। उनके पिताजी सतोजी मेहड़ू राव बीकाजी के साथ जोधपुर से आए थे। बीकानेर रियासत में उन्हें खारी चारणान सहित दो गांवों की जागीर प्राप्त थी। कोलायत तहसील स्थित खारी चारणान में उनके वंशज अब भी निवास करते हैं। लालोजी मेहडु बीकानेर रियासत के प्रथम कविराज एवं अत्यंत प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। बीकानेर राव लूणकरण के वक्त एक बार लालोजी जैसलमेर गए तो जैसलमेर के तत्कालीन रावळ देवीदास ने नवस्थापित बीकानेर रियासत की खिल्ली उड़ाते हुए कहा कि यदि बीकानेर के राठौड़ एक बार मेरी सीमा में आकर दिखाएं तो वह जमीन मैं ब्राह्मणों को दान कर दूंगा। लालोजी मेहडू को यह गर्वोक्ति अखर गई और उन्होंने जैसलमेर रावळ द्वारा दिए गए पुरस्कारों इत्यादि को ठुकरा कर बीकानेर की ओर प्रस्थान किया। जब वे राव लूणकरण के दरबार में गए तो राव ने उन्हें कुशल क्षेम पूछते हुए खिन्नता एवं उदासी का कारण पूछा। प्रत्युत्तर में लालोंजी ने सम्पूर्ण घटनाक्रम एवं वार्तालाप का विस्तृत ब्यौरा दिया। जिसके परिणाम स्वरूप राव लूणकरण ने अपनी 15,000 की सेना के साथ संवत 1571 ई. में जैसलमेर पर आक्रमण किया एवं रावळ देवीदास को गिरफ्तार कर लिया।  वस्तुत: यह सैनिक अभियान लालोजी मेहडू और बीकानेर रियासत के अपमान का प्रतिशोध हेतु ही था। बंदी अवस्था में जैसलमेर रावल से मिलकर लालोजी ने भूमि ब्रह्मणों को दान देने की बात पर रावल ने शर्मिंदगी महसूस करते हुए लालोजी से संकट के समाधान का अनुरोध किया। लालोजी ने जैसलमेर की भाटी कन्याओं को बीकानेर के राठोड़ों से विवाह करवा कर तथा एक लाख रुपयो की जुर्माना राशि को दहेज स्वरूप बीकानेर के राठौड़ को दिला कर विवाद का पटाक्षेम किया। इससे यह तथ्य उजागर होता है कि एक स्वाभिमानी चारण की बात को रियासतों में कितनी गंभीरता से लिया जाता था और लालोजी मेहड़ू की बीकानेर रियासत में कितनी प्रतिष्ठा थी। उपर्युक्त घटनाक्रम का विवरण 'दयालदास सिढायच री ख्यात' एवं ख्यात देश दर्पण' में उपलब्ध होता है।  लालोजी मेहड़ू द्वारा इस भाव का रचित यह गीत भी बहुत प्रचलित है:-

*राठौड़ा वाद न कीजै रावळ,*
*देखो कासूं आयी दाय।*
*सांगै भला पाविया साकुर,*
*जोधहरै जेसाणे जाय।।*
*देद कुबधचौ भेद दाखियौ,*
*झूठो कियौ कविसूं झौड़।*
*मेहड़ू तणे बचन रै माथै,*
*रातै गढ़ आयौ राठौड़।।*
*खेह हुई गोरहर गढ़ खैगा,*
*बीदहरै वरदायी।*
*जैसलमेर तणे सिर जादा,*
*लालै चाल लगायी।*
*बीदाहरै तणा जस ईण विध,*
*गुणीयम मैडू गायौ।*
*समहर कियो राव छळ सांगै,*
*ऐम फतै कर आयौ।।*




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​उपरोक्त माहिती:- चारण समाज के गौरव पुस्तक से प्राप्त हुई।​

    ​           लेखक:- जगदीश रतनु 'दासौड़ी'​

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