Monday 25 September 2017

चरण मोहि राखो चालकनेज,

कुल देवी श्री चाळराय के श्री चरणों में
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चरण मोहि राखो चालकनेज,
शरण तव छोरु जी हमेश।। टेर।।
विविध वृद ज्यूंही मो धारो,
चरण रो दीज्यो माँ सहारो।
कुपात्र जाण कर काँई,
मात न पूत मन मारयो।
उबारो आप रो जन देख,
चरण मोहि राखो चालकनेज      ।।१।।
मति गति तू ही महामाई,
सकल संसार सकलाई।
विपत में याद तू आई,
बुद्धि दी पहले भरमाई।
दाता आप दो मो देश,
चरण मोहि राखो चालकनेज
।।२।।
ध्यान दो ग्यान दो धाता,
विमल जस की तू उपजाता।
सकल संसार की सरनी,
त्रिविध जग ताप की तरनी।
करम गति रेख को ना देख,
चरण मोहि राखो चालकनेज।।३।।
भणे "देव" ज्ञान भिखारी,
जता सह सिक्षा जगवारी।
महड़ू कुल की महतारी,
चरण थिर आ पड्यो थारी।
जनम के दोस को ना देख,
चरण मोहि राखो चालकनेज।। ४।।

रचित
देवराज सिंह जाड़ावत
ठिकरिया कविराय
बूंदी

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माँ महामाया करणी जी महाराज की आरती श्री चरणों में

माँ महामाया करणी जी महाराज की आरती श्री चरणों में
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*राग /तर्ज आरती कुन्ज बिहारी की* हरी ओम शरण album प्रेमांजली पुष्पांजलि

आरती मेह दुलारी की, जयति सज्जन भय हारी की।। टेर।।

जयति जय धन जंगल धरणी,
चरित किये अमिट जहाँ करणी।
तारणी ताप हारणी श्राप,
जयति जय जय अघ हरणी की।।१।।
आरती मेह दुलारी की.....
मात तुम ज्ञानवंत गीता,
निमिष में अखिल विश्व जीता।
क्रूर किये दूर भक्त भरपूर,
जयति जय जय श्रुति बरणी।।२।।
आरती मेह दुलारी की.......
मात तुम गोधन हितकारी,
अमिय जन लीला विस्तारी।
अधम खल मेट स्वजन हित हेत,
जयति जय लोवड वरणी की।।३।।
आरती मेह दुलारी की.....
मात तुम मलेच्छन कीने दूर,
राष्ट्रकुल थरपे धरणी पुर।
विमल जस जोर फिरी चहुं और,
जयति जय करुणा करणी की।।४।।
आरती मेह दुलारी की......
मात तुम सेवक हित धाईं,
पूर्ण की सबकी मन चाईं।
बणिक की बेर शेख की टेर,
जयति जय संभल वरणी की।।५।।
आरती मेह दुलारी की......
मात तुम चारण कुळ तरणी,
धरणी जन *देव* सदा बरणी।
दया की धाम माँ पूरण काम,
जयति हिय पावन करणी की।।६।।
आरती मेह दुलारी की.......
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रचित
ठा. सा. देवराज सिंह जाड़ावत
ठिकरिया कविराय
जिला बूंदी (राज.)

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Thursday 14 September 2017

ओखा - हरण लागीदासजी मेहडू

करि समरणां धांनकरि । करणा करणज कोअे।
हेकणवार मरण होअे । फरि अवतरणा नोअे ।।

कोई तो ए दया करवाळा नु ध्यान करो. अेथी  अेक ज वार मुत्यु थशे, ते पंछी जन्मवानुं नहीं होय

परम न गावे पेृमसे । जे जे अधरम जंत ।
भरमी भुला भोगवी । अकरम करम अंनत

जे जे अधर्मी जीवोअे स्नेहपुवॅक परमेश्वर ने गाया नथी भृम थी भुलेला तेओ पोताना अपार पापकमोॅ ने भोगवशे.

राम तजे अन देवरी । कीजी सेव न कोअे ।
जे अवतारी जगतमां । सरि उधारि सोअे ।।

राम ने तजी अन्य देवनी सेवा कोइ करशो नही, केम के जे ( राम) जगतमां अवतार लेनारा छे ते ज अंते आपणने उध्धारशे.

सरम करताथीं सरम । के अकरम करंम ।
थां गाडुं दीठा थकां । पग थाका अपरंम ।।

आज लजवंता पण मने लाज आवी छे, मारां केटलाय पापी कामनां कमोॅ छे , पण हे परमेस्वर , तारु गाडुं जोयाथी हवे मारा पगो थाकी गया छे .

पग साजे अपरमपर । जगविह आवि जोअे ।
लष चुरासी लांगडि । आवागमण न होअे ।।

जगत वच्चे आवी ने जोतां परमेस्वर नां चरणों रूप साधन वडे ओ लागींदास ! चौरासी लाख योनीओमां पुनः आवागमन थवानुं नथी रहेतुं .

नज चुमु फरिउ नही । भागल पगे भगत ।
देअल फरिआ भगत दस । अे अवगति वगति ।।

भक्त अेवो चुमोजी चारण के जेना पगों भागीं गया हता, ते पोते देवल नी दीशामां फयोॅ नहीं , पण देवल ज भगतनी दिशामां फयुॅ . आ पृभु नि पिछाण छे.

चुमु गोदड ईसर चवि । नरसी तंमरनाद ।
नामिं तरिआ नांमदे । पिृषत धृु पिृहलाद ।।

चुमो ,गोदडजी , इसरदास कहीअे, वळी तंबुरानो नाद गजवता नरसिंह महेता; परिक्षीत,धुृव , पृहलाद अने नामदेव जेवा भकतो पृभु नाम वडे तरी गया .

सरता दाता पाल सत। कडतल रूप करन ।
हर भगति वजपालहर । वरतावन षट वृन ।।
ओखा - हरण
लागींदास महेडु ( गोलासण)
टंकन- विजयदान महेडु

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Friday 8 September 2017

उपरोक्त दूहो फेसबुक माथे पोस्ट कियां बाद सुहागी रा शक्तिदानजी मेहड़ू अर मीठा मीर डभाल रे बीच में हुई वार्तालाप

भालाळे पाबू भलां , कमध निभायो कौल ।
ओ मिनखो अनमोल , शूर कही आ शामळा ।।
मीठा मीर डभाल
उपरोक्त दूहो फेसबुक माथे पोस्ट कियां बाद सुहागी रा शक्तिदानजी मेहड़ू अर मीठा मीर डभाल रे बीच में हुई वार्तालाप

मीठा मीठै मीर, गुण पाबू रा गावेया!
भालाळो ले भीर, अबखी मैं आवै अवश?

कमधज पाबू जो कही ,  सो पाळी सिरदार ।
आप होय असवार , सरगां पूग्यो शामळा ।।
मीठा मीर डभाल

वेदू रा पाळै वचन, (ऐ) रजपूतां री रीत!
देवल सगती ने दिया, पाबू कौल स प्रीत?

अटल नेम राखण इसा , हुवे न भूप हमेश ।
जनमे पाबू जेहड़ा , नामी कोय नरेश ।।
मीठा मीर डभाल

कमधज वेदू कारणे , कियो शीश कुरबान ।
भूल्यो कौल न भूपती , जिका सत्य कर जान ।।
मीठा मीर डभाल

कवियों रे वचनां कजू ,साको किय समराथ!
पाबू रचायो प्रथी पै, भालै सू भाराथ?

देवल जो नह देवती , पाबू हाथ पमंग ।
अमर न होत कमध उत्त , सेंधव रे कज शामळा ।।
मीठा मीर

झगड़ां मैं के झूझया, जकां नही जग जांण!
पाल लड्यो कज पांथूआं, प्रसिद्ध दुनि परमांण?

पी दारु परवारयां , करतों रहे कंकास ।।
उणरो जस इतिहास , संग्रहे नांहि शामळा ।।
मीठा मीर डभाल

ढळे पड़ै के ढोलियै ,सड़तां मरै शरीर!
वेदू कज इक वीर, पाबू नै पूजै प्रथी?

दमा रोग हुय देह में , मांदों होय मरन्त ।
कोय न याद करंत  ,शूर दान बिन शामळा ।।
मीठा मीर डभाल

वोट तणो आयो वखत, ताकत रो नह तोल!
दमा खांसी दारूडीया, मळै न मांघै मोल?

वोटां राज विगाडयो , लोक हुआ लाचार ।
मेहनत बिना धन मिळे ,ऐह सब रहे उच्चार ।।
मीठा मीर डभाल

अबळा सो सबळा अबै, नबळा हुआ नरां!
पड़्या रहै पिछवाड़ मैं, कितरो सोच करां?

आगे नह अबळा हती , सबळा हती सदाय ।
भवानी असुर  भरखती  , आप सगत झट आय ।।
मीठा मीर डभाल

सबळा होवण सगत रो, कदियक पड़तो कांम!
वसुन्धरा रै वखत मैं, हालत करी हरांम?

माया खातिर मुलक में , नरां छोड़यो नेम ।
हाकम जद औरत हुवे , कुशळ आवसी केम ?
मीठा मीर डभाल

जीन्स पैन्ट पैरै जबर, ऊघाड़ी अरधंग?
वंश विगाड़ण वनीयता, रंग हो रांणी रंग?

मरजादा रख मेहळा , नरां न ताकत नार ।
हीण नजर दुनिया हुवे,  (तो) वधे जद व्यभिचार ।
मीठा मीर.डभाल

भलकारा भूरी भणै, जाटां तणी जमात!
रजपूतौ रै राज में, कैम रहै कुशळात?

राज न हाथों राजनां , अब जूठी सब ऐह ।
तेगां ठौड़ ज ताळियां ,
तुरत बजावे तेह ।।
मीठा मीर डभाल

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Wednesday 23 August 2017

व्रजभाषा पाठशाला (भुज-कच्छ) में अभ्यास किये हुए मेहडू जाती के कवियो की नामांवली

*व्रजभाषा पाठशाला (भुज-कच्छ) में अभ्यास किये हुए मेहडू जाती के कवियो की नामांवली*

1.उदयभान मेहडू
2.उदयभान मालवजी मेहडू
3.कानदासजी मेहडू
4.जबरदानजी मेहडू
5.जीवाभाई गजाभाई मेहडू
6.जीजीभाई मेहडू
7.जेठीभाई केशरभाई मेहडू
8.नवलदान जेताभाई मेहडू
9.ठारणभाई मेहडू
10.पृथ्वीराज खेतदान मेहडू
11.प्रभुदान देवीदानजी मेहडू
12.मावलजी जीवाभाई मेहडू
13.मालवजी मेहडू
14.मूलूभाई मेहडू
15.मोधाभाई मेहडू
16.लागीदासजी मेहडू
17.वजमाल मेहडू
18.सांगाजी मेहडू
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Thursday 10 August 2017

ढोला ओर मारुई

ढोला ओर मारुई
के शुरा के पंडता , के गरुआ गंभीर ;
नारी नेह नचाडीया , जे जे बावनवीर.....१
       जिसने कीतने शुरा, कीतने पंडीतो ओर अनेक गरवा ओर गंभीर नर ओर नारी को पेृम पास मे बांध के नचाया ऐसे भगवान कामदेव को नमस्कार हो.

पटराणी पीगंळ तणी ; अपछर री अणहारी ;
आछी ऊमा देवडी , सुंदरी अेणी संसारी.....२

          पिंगल राजा की पटराणी ऊमा देवडी ऐ संसार मे सवोॅच्च सुंदरी ओर उप्सरा सरीखी रूपवान नारी थी .

माथुं धोये मेडी, ऊभी सुरज सामंही;
ताइ उपनी पेट, मोहणवेली मारुई.....३
       ऐ राणी उमा देवडी अेक वेळा त्रॅुतुस्नान कर राजमहेल के झरुखे से भगवान सुयॅ सामने खड़ी ओर देवकृपा से राणी के उदर मोहनवेल सरखी मारुई नाम की राजकुमारी जन्मी.

जनम हुवो पुत्री तणो , ओछव हुवो उपार;
उती सुदंर सरूप , अंग पदमण रे अवतार...४
           ए राजकुमारी जन्म से राज्य में आनंद उत्सव हुआ , उतीसुंदर रूप सपृमाण अंगलठवाली राजपुत्री पदमणी का अवतार थी,

भुपत भायो भाटने, कीधो कोृड पशाव ;
चालीयो गढ नरवर भणी, पृणमे पींगलराव...५
        उस समय राजा पिंगल उती आंनदीत हुये ओर कवि भाया बारोट को करोड पसाव से नवाज़ा दीया. तब कविश्वर राजा को सलाम नरवरगढ की ओर चले.

वरस डोढ वोळे पछी, तास अंदृ नह वुठे;
खड पाखेइ लोक खंड , वरतणी गियां अठे..६
  
          जब देढ साल की मारूइ हुइ, उस साल मेघराजा  रिझे नही, ओर घासचारे बिन व्याकुल लोक अपने मालढोर लेके दुष्काल उतारने विदेश चले.

मारुं थाकां देशमां, अेक न भांजे पीड;
को'दि थिअे वृसणुं, काफा कुफा तिड...७

      मारुइ ! तारे देश की अे पीडा कभी टळी ज नहीं , सारा वरस कभी होय , बाकी तो दुष्काल ओर तीड के टोलें ए पृदेश में आते ही रहते है.

पिंगल परियाणी पुछीया, किजे त्रेवड कांइ;
कोयेक  देश अटकळो, जेथ वशीजे जाइ...८

        तब राजा पिंगल ने जाणतल माणुस बुलाके कहा “ कोइ उपाय करो, कोइ देश बतावो जहां हम सब दुष्काल के वसमे दीन बिताने जा बसे ".

खड जल पाखे गो रूआं , देश थियो दकाळ;
पोह करे खड पाणी पृघळ, सं णि पींगळ भूपाल..९

       ऐ पोगळ देश मे सवॅत्र दुष्काल व्याप गया है , भुख तरसी गाये खड-पाणी के अभाव से भांभरडां दे रही ओर पृजाजन कहे “राजा सुणो अब कही बहोले खडपाणी वाले पृदेश दुष्काल उतारने जाइ".
         -----कृमश

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कविस्वर लुणपालजी के ढोलामारु रे दोहे

कविस्वर लुणपालजी के ढोलामारु रे दोहे ( सुफी- उन कामलीवाले, Magu, Sophia - दाशॅनीक , षटवणॅ ) आध्यात्मिक रस रंग अथॅ जीस में ढोला यानी परमात्मा ओर मारुं यानी पृकुती - चित इच्छा शकित एेसा दिव्य अनुभूति के रंग  महात्मा संत कबीर की कबीरवाणी में भी फकत ऐक शब्द का परिवर्तित भक्तिपरक साखीआ मील रही है . ये सुफी आख्यान की आगवी यादी  दे रहे है

  अंबरी कुंजा करलीयां, गरजी भरी सब ताल:
   , ताकु कवण हवाल ,
   अखीयन तै झाँइ पडी, पंथ निहारी निहारी:
   जीभ्या मां छालां पडयां , पिव पुकार पुकारी.     ढोलामारु ( लुणपालजी महेडु )

  अंबरी कुंजा करलीयां, गरजी भरी सब ताल:
   , ताकु कवण हवाल ,
   अखीयन तै झाँइ पडी, पंथ निहारी निहारी:
   जीभ्या मां छालां पडयां , राम पुकार पुकारी.      कबीरवाणी । ( संत कबीर )

भकित कवियत्री मेवाड़ी महाराणी मिरांबाइ जन्म वतन मेडात ओर ससुराल मेवाड- राज. देानो राजवंश चारण ओर चारणी साहित्य के चाहक ओर आश्रयदाता. इन राजकुलो का चारणीसाहीत्य के पृसारण में योगदान न हो तो ही आश्चर्य ! मिरांबाइ की कहाती साखीया ओर भजन में भी ढोलामारु के दोहे मील रहे है.

   कागा ! करक ढंढोळे , करि सब ही खाये मासं:
ऐक न खाये लोयणां, पियु देखण की आस...२२४

कौवा सुण मारु कहे, उडी नरवर जाय :
लेइ हमारी पांसळी, ऊस लोभी देखत खाय.
ढोलामारु ६/१७८ लुणपालजी महेडुं

कागा सब तन खाइओ, चुनचुन खाइओ मांस:
दो नैना मत खाइओ, मोहे हरी मिलन री आस.

हरी ए न बुझी बात, माइ! टेक
काढ कलेजो भोंय धरु हो, रामजी
कौवा तुं ले जाय,
जहाँ देश मोरा पियुं बसत है
वे देखें तु ं खाय ... माइ ३
मिरांबाइ सैा. यु . ह. पृ १५३/३९५१
   इसतरह संत कबीर ओर मिरांबाइ जेसे भक्त कविओ के मुख से पृसारीत हुये ढोलामारु री वात के दुहे से पृभावित वितरागी साधु कुशळलाभजी( वि. १६७७) चोपाईबध्ध कर लिख रहे है,

   “ जे पण पर कवि मुख सांभळी, तिण पर में मन रळी.
दोहा घणा पुराणा अछे, चोपाई बंध कियेा में पछे.”

  ए जैन साधु कवि कुशळलाभजी जेसलमेर के रावल मालदे के पुत्र कुवंर हरराज के काव्य गुरु सहयोगे पृथम डींगल छंद शास्त्रगृंथ पिगंळ शिरोमणी दीया है । जीस मे २३ दुहे , २८ गाथा ओर ७१ पृकार के छप्पय लक्षण उदाहरण सहीत दीये है । ७५ पृकार के उलंकार ओर चित्रकाव्य ओर डींगळ नाममाळा पृकरणपयाॅय वाची शब्दबध्ध संकलन देते हुये ४० डींगळ गीतों के लक्षण दीये है (१६३४) इसी उनुसंधान में महेडु कविराज गोदडजी ने चोवीस उवताररां छंद में चोवीस पृकार के डींगळ छंद उदाहरण दीये है

संकलन - यशवंतजी लांबा
युविवसॅल महेडु उल्लायन्स

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Tuesday 8 August 2017

સકળ વિશ્વની મોગલ શક્તિ

સકળ વિશ્વની મોગલ શક્તિ

મોગલછોરૂ નો પોકાર અડધા સાદે સાંભળી ને #ભીમરાણા થી પહોંચે
પણ પોકાર નાભિ ને અંતર થી નાદ થાય તો,
કવિ મોતીસીંગ મહેડું  આઇ મોગલ વિશે કહે છે કે
કરતા હરતા કાયમ મોગલ, વીણ મોગલ એં જૂઠી વાત
જ્ઞાન યોગ મોગલ પદ ગણીએ,નવરસ મોગલ બીમનીહાળ
સાન મોગલની દિયે સ્તુતિયું,જ્યોતિષ મોગલ તણો જવાબ
ત્રિભુવન મોગલ તણો તમાશો,આંખે જગ મોગલ એ રાબ
આદ રૂપ મોગલ એ ઉમિયા,તેત્રીસ કોટી મોગલ ના તન
નવલાખરૂપે મોગલ નિક્ષય,માને માનવ સાચે મન
#એમોગલ #ઓખાધર #જન્મ્યાં #દેવસુર #ઘાંઘણીયા #દ્વાર

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खरो परचो खोडली चारण कवि श्री कानदास महेडु

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      खरो परचो खोडली

चारण कवि श्री कानदास महेडु

तेमणे भूज नी व्रज भाषा नी पाठशाळा मां अभ्यास कर्यो हतो

कवि नु जन्म इ स 1757
मृत्यु इ स 1859

टाइप हरि गढवी
गाम ववार
ता मुंन्द्रा    कच्छ
मो  96380 41145

                    दुहो

पसा उक्त दे गणपति सधबध नाअक साम
आद शक्त गण उचारुं प्रथम करुं प्रणाम

मामडिया मादा तणी चडतुं रखण चकार
मेखासुर हणवा मैया तें सज कीधो शणगार

                     छंद

ते शणगार धवा, किउ सजवा, दूत भजवा डारंणं
डहकिया छाकं, रुंड डाकं, विरहाकं वारणां
फेट मां अरचो, करण परचो, मीयण चोपड धलमली
शरमोड शरचो, अळां अरचो, खरो परचो खोडली

तण वखत झोळा, मळे टोळा, नवेलख सोळा नुधि
मळे रुद्राणी, ब्रह्माणी, व्रशनाणी थे वृद्धि
कोयलावाळी, महाकाळी, खपराळी तां खळी
      सरमोड सरचो,,,,,,

भडइउ साखर, भणंक भाखर, खमंड पाखर खेतलो
धूमती ढेली, रमत धेली, बांआं बेली ब्रझलु
आदि अनादि, जोरे जादी, चंडीका मादी चली
       सरमोड सरचो,,,,,,,,

धुधरुं धमके, चूड चमके, चलत ठमंके, चंडिका
हींडळे सारे, कंठहारं, मुक्तसारं मंडिका
झालरुं झळके, वेण वळके, बेहद भळके बंदली
       सरमोड सरचो,,,,,,

रमझोळ रममं, ठोर ठमंमं, धोर धममं, गाजिअं
सोहे सकोमळ, अंग उजळ, रेख काजळ व्राजीअं
भाल सिदूरं, भरपूरं अरक, नूर ओडली
            सरमोड सरचा,,,,,,

वधपना वळळ जोतझळळळ, भजे भळळळ भेळियो
सुधा समोहं अंग सोहम् बोह डोहंब कियो
झुलरां खोडी, रम जोडी, छप्पन कोडी सरछली
          सरमोड सरचो,,,,,,,,

त्रसूळ त्रछट, अरि अछट, प्रथी पटे पाडे दिउ
दोह वाट अडडड, रगत दडडड, मरड मेखो मारिउ
भर पत्र कुंडां, थइ भ्रेकूडां, रुड मुंडा रोडली
            सरमोड सरचो,,,,,,

जेकार थाहर, जगत जाहर, सदा वाहर सेवगां
उपटे धावे, मैआ आवे, लज रहावे देलगां
वधार वानड, अख आनंड, भणे कानड भणी
शरमोड शरचो, अळां अरचो, खरो परचो खोडली

                  छप्पय

खरी देव खोडल, वदे जस जगत वचाळे
खरी देव खोडल, भोवण परचो जग भाळे
खरी देव खोडल, नीयणां दलद्र निवारण
खरी देव खोडल, मतंग मेखासुर मारण
चारण वरण राखत चडा, अळ मादाकुळ अवतरी
करजोड कान महेडु कहे, खोडल देवी हे खरी जीय खोडद देवी हे खरी

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कानदासजी मेहडु कृत हनुमान वंदना

*कानदासजी मेहडु कृत हनुमान वंदना*

                          *दोहा*

सुरस्वती उजळ अती, वळि उजळी वाण।
करु प्रणाम जुगति कर, बाळाजती बखाण॥1॥

अंश रुद्र अगियारमो, समरथ पुत्र समीर।
नीर निधि पर तीर नट,कुदि गयो क्षण वीर॥ 2 ॥

खावण द्रोणाचळ खमै, समै न धारण शंक।
वाळण सुध सीता वळै, लिवि प्रजाळै लंक॥ 3 ॥

पंचवटी वन पालटी, सीत हरण शोधंत।
अपरम शंके धाहियो, हेत करै हडमंत॥ 4॥

                         *छंद त्रिभंगी।*

मन हेत धरंगी, हरस उमंगी, प्रेम तुरंगी, परसंगी।
सुग्रीव सथंगी, प्रेम पथंगी, शाम शोरंगी, करसंगी।
दसकंध दुरंगी, झुंबै झंगी, भड राखस जड थड भंगी।
रामं अनुरंगी, सीत सुधंगी, बिरद उमंगी, बजरंगी॥ 1 ॥

अवधेश उदासी, सीत हरासी, शोक धरासी, सन्यासी।
अणबखत अक्रासी, बोल बंधासी, लंक विळासी, सवळासी।
अंजनी रुद्राशी, कमर कसंसी, साहर त्रासी, तौरंगी।
रामं अनुरंगी, सीत सुधंगी, बिरद उमंगी, बजरंगी॥ 2 ॥

करजोड कठाणं, पाव प्रमाणं, दधि प्रमाणं, भरडाणं।
भचकै रथ भाणं, धरा ध्रुजाणं, शेष समाणं साताणं।
गढलंक ग्रहाणं, एक उडाणं, पोच जवाणं, प्रेतंगी।
रामं अनुरंगी, सीत सुधंगी, बिरद उमंगी, बजरंगी॥ 3 ॥

हलकार हतूरं, फौज फतूरं, सायर पूरं संपूरं।
कर रुप करुरं,वध वकरुरं, त्रहकै घोरं, रणतूरं।
जोधा सह जुरं, जुध्ध जलुरं, आगैवानं, ओपंगी।
रामं अनुरंगी, सीत सुधंगी, बिरद उमंगी, बजरंगी॥ 4 ॥

आसो अलबेली, बाग बणेली, घटा घणेली, गहरेली।
चौकोर भरेली, फूल चमेली, लता सुगंधी, लहरेली।
अंजनि कर एली, सबै सहेली, हेम हवेली, होमंगी।
रामं अनुरंगी, सीत सुधंगी, बिरद उमंगी, बजरंगी॥ 5॥

नल नील तेडाया, गरव न माया सबै बुलाया, सब आया।
पाषाण मंगाया, पास पठाया, सब बंदर लारे लाया।
पर मारग पाया, राम रिझाया, हनुए धाया, हेतंगी।
रामं अनुरंगी, सीत सुधंगी, बिरद उमंगी, बजरंगी॥ 6॥

लखणेश लडातं, सैन धडातं, मुरछा घातं, मधरातं।
साजा घडी सातं, वैद वदातं, प्राण छंडातं, परभातं।
जोधा सम जातं, जोर न मातं, ले हाथं बीडो लंगी।
रामं अनुरंगी, सीत सुधंगी, बिरद उमंगी, बजरंगी॥ 7॥

हनुमंत हुंकारं, अनड अपारं, भुजबळ डारं, भभकारं।
कर रुप कराळं, विध विकराळं, द्रोण उठारं, निरधारं।
अमरं लीलारं, भार अढारं, लखण उगारं, दधि लंघी।
रामं अनुरंगी, सीत सुधंगी, बिरद उमंगी, बजरंगी॥ 8 ॥

सिंदूर सखंडं, भळळ भखंडं, तेल प्रचंडं, अतडंडं।
किय हार हसंडं, अनड अखंडं, भारथ डंडं, भुडंडं।
चारण कुळ चंडं, वैरि विहंडं , प्रणवै कानड कवि पंगी।
रामं अनुरंगी, सीत सुधंगी, बिरद उमंगी, बजरंगी ॥ 9

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मन हेत धरंगी, हरस उमंगी, प्रेम तुरंगी, परसंगी।

मन हेत धरंगी, हरस उमंगी, प्रेम तुरंगी,
परसंगी।
सुग्रीव सथंगी, प्रेम पथंगी, शाम शोरंगी,
करसंगी।
दसकंध दुरंगी, झुंबै झंगी, भड राखस जड थड
भंगी।
रामं अनुरंगी, सीत सुधंगी, बिरद उमंगी,
बजरंगी॥1॥

अवधेश उदासी, सीत हरासी, शोक धरासी,
सन्यासी।
अणबखत अक्रासी, बोल बंधासी, लंक विळासी,
सवळासी।
अंजनी रुद्राशी, कमर कसंसी, साहर त्रासी,
तौरंगी।
रामं अनुरंगी, सीत सुधंगी, बिरद उमंगी,
बजरंगी॥2॥

करजोड कठाणं, पाव प्रमाणं, दधि प्रमाणं,
भरडाणं।
भचकै रथ भाणं, धरा ध्रुजाणं, शेष समाणं साताणं।
गढलंक ग्रहाणं, एक उडाणं, पोच जवाणं,
प्रेतंगी।
रामं अनुरंगी, सीत सुधंगी, बिरद उमंगी,
बजरंगी॥3॥

हलकार हतूरं, फौज फतूरं, सायर पूरं संपूरं।
कर रुप करुरं,वध वकरुरं, त्रहकै घोरं, रणतूरं।
जोधा सह जुरं, जुध्ध जलुरं, आगैवानं, ओपंगी।
रामं अनुरंगी, सीत सुधंगी, बिरद उमंगी,
बजरंगी॥4॥

आसो अलबेली, बाग बणेली, घटा घणेली, गहरेली।
चौकोर भरेली, फूल चमेली, लता सुगंधी,
लहरेली।
अंजनि कर एली, सबै सहेली, हेम हवेली,
होमंगी।
रामं अनुरंगी, सीत सुधंगी, बिरद उमंगी,
बजरंगी॥5॥

नल नील तेडाया, गरव न माया सबै बुलाया, सब
आया।
पाषाण मंगाया, पास पठाया, सब बंदर लारे लाया।
पर मारग पाया, राम रिझाया, हनुए धाया,
हेतंगी।
रामं अनुरंगी, सीत सुधंगी, बिरद उमंगी,
बजरंगी॥6॥

लखणेश लडातं, सैन धडातं, मुरछा घातं, मधरातं।
साजा घडी सातं, वैद वदातं, प्राण छंडातं,
परभातं।
जोधा सम जातं, जोर न मातं, ले हाथं बीडो लंगी।
रामं अनुरंगी, सीत सुधंगी, बिरद उमंगी,
बजरंगी॥7॥

हनुमंत हुंकारं, अनड अपारं, भुजबळ डारं,
भभकारं।
कर रुप कराळं, विध विकराळं, द्रोण उठारं,
निरधारं।
अमरं लीलारं, भार अढारं, लखण उगारं, दधि
लंघी।
रामं अनुरंगी, सीत सुधंगी, बिरद उमंगी,
बजरंगी॥8॥

सिंदूर सखंडं, भळळ भखंडं, तेल प्रचंडं, अतडंडं।
किय हार हसंडं, अनड अखंडं, भारथ डंडं, भुडंडं।
चारण कुळ चंडं, वैरि विहंडं , प्रणवै कानड
कवि पंगी।
रामं अनुरंगी, सीत सुधंगी, बिरद उमंगी,
बजरंगी॥9 ।।

*~~कानदासजी मेहडु~~*

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Sunday 6 August 2017

करि समरणां धांनकरि । करणा करणज कोअे

करि समरणां धांनकरि । करणा करणज कोअे।
हेकणवार मरण होअे । फरि अवतरणा नोअे ।।

कोई तो ए दया करवाळा नु ध्यान करो. अेथी  अेक ज वार मुत्यु थशे, ते पंछी जन्मवानुं नहीं होय

परम न गावे पेृमसे । जे जे अधरम जंत ।
भरमी भुला भोगवी । अकरम करम अंनत

जे जे अधर्मी जीवोअे स्नेहपुवॅक परमेश्वर ने गाया नथी भृम थी भुलेला तेओ पोताना अपार पापकमोॅ ने भोगवशे.

राम तजे अन देवरी । कीजी सेव न कोअे ।
जे अवतारी जगतमां । सरि उधारि सोअे ।।

राम ने तजी अन्य देवनी सेवा कोइ करशो नही, केम के जे ( राम) जगतमां अवतार लेनारा छे ते ज अंते आपणने उध्धारशे.

सरम करताथीं सरम । के अकरम करंम ।
थां गाडुं दीठा थकां । पग थाका अपरंम ।।

आज लजवंता पण मने लाज आवी छे, मारां केटलाय पापी कामनां कमोॅ छे , पण हे परमेस्वर , तारु गाडुं जोयाथी हवे मारा पगो थाकी गया छे .

पग साजे अपरमपर । जगविह आवि जोअे ।
लष चुरासी लांगडि । आवागमण न होअे ।।

जगत वच्चे आवी ने जोतां परमेस्वर नां चरणों रूप साधन वडे ओ लागींदास ! चौरासी लाख योनीओमां पुनः आवागमन थवानुं नथी रहेतुं .

नज चुमु फरिउ नही । भागल पगे भगत ।
देअल फरिआ भगत दस । अे अवगति वगति ।।

भक्त अेवो चुमोजी चारण के जेना पगों भागीं गया हता, ते पोते देवल नी दीशामां फयोॅ नहीं , पण देवल ज भगतनी दिशामां फयुॅ . आ पृभु नि पिछाण छे.

चुमु गोदड ईसर चवि । नरसी तंमरनाद ।
नामिं तरिआ नांमदे । पिृषत धृु पिृहलाद ।।

चुमो ,गोदडजी , इसरदास कहीअे, वळी तंबुरानो नाद गजवता नरसिंह महेता; परिक्षीत,धुृव , पृहलाद अने नामदेव जेवा भकतो पृभु नाम वडे तरी गया .

सरता दाता पाल सत। कडतल रूप करन ।
हर भगति वजपालहर । वरतावन षट वृन ।।
ओखा - हरण
लागींदास महेडु ( गोलासण)

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Friday 4 August 2017

हणूंतसिंह मेहडू

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"क्रांतिवीर चारण कवि शंकर दान सामोर "
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*संकरीये सामोर रा*
*गोळी हन्दा गीत*
*मिंतर साचा मुलक रा*
*रिपुंवा उलटी रीत*

आजादि से पहले जिन मामूली लोगों को बोलने का हक नहीं था उनकी आवाज को वाणी दी शंकर दान समोर ने और उस वाणी को लोगों के कानों तक पहुंचाई , जब कहने सुनने से काम नहीं चलता दिेखा तब शंकर दान सामोर आगे वान हुए, लोगों को नया रास्ता बताया राज और समाज की लड़ाई में खुलकर आ गये .सत्याग्रह धरना की मांजल को पार करते करते शंकर दान  सन 1857 के महा संग्राम तक पहुंचे |
शंकर दान गोरी सत्ता के विद्रोही विप्लवी क्रांतिकारी कवि थे उनकी कविता में अंग्रेजो के खिलाफ राजस्थान के लोगों के मन में रोष को विस्फोट के रूप में प्रकट करने की क्षमता थी वह कवि के रूप में देश पर आए हुए अंग्रेजी गुलामी के संकट से समाज को सूचित करते हुए युग चारण के रूप में समाज की रखवाली करने में पीछे नहीं रहे सन 18 57 के स्वतंत्रता संग्राम में नए नए आयामों की ओज भरी ऐसी निडर अभिव्यक्ति दी कि लोगों ने उन्हें "सन सत्तावन का कवि" कहकर सम्मान दिया | राजस्थान में सबसे पहले अंग्रेजों के सामने पांव रोकने वाले जो जंवामर्द थे बठोठ पाटोदा सीकर के डूंगर जी जवार जी . डुंगजी को आगरा की जेल तोड़कर छुड़ाने में जो वीर  थे वह खुमाण सिंह लोडसर कान्हा सिंह मलसीसर ,जोर सिंह मीणा उजीण सिंह मिगणा  धाहरा मेहडू साखा  के चारण हणूंत सिंह भोमसिंघोत , चतुर सिंह नरुका और करण मीणा बालों खवास इत्यादि थे . आगरा की बेड में उजीण सिंह और हणूंत सिंह मेहडू काम आये .
उनकी याद में शंकर दान जी सामोर  के कहे हुए मर्सिए आज भी कोढ़ से कहे और सुने जाते हैं *चितकर  सूरज चलेह* *गढवी गढ़ भेळर  गियो*

*मेहडू राण मिलेह*
*एकर हणूंत आवजे*

संग 1857 के युद्ध में संपूर्ण देश मे अंग्रेजी सत्ता को चुनौती देने वालों में महावीर *तात्या टोपे* ही था ,उस महावीर तांतिया को अपनी मुसीबत के समय जो मदद शंकर दान सामोर ने कि वह इतिहास में सोने के अक्षरों में लिखी जाएगी . चारों ओर से निराश तात्या टोपे मदद की आस में शेखावाटी की तरफ आया मदद के भरोसे लक्ष्मणगढ़ के किले में गिर गया लक्ष्मणगढ़ के किले से छूटते ही कहीं पर मदद नहीं मिलती देखी तो शंकर दान बोबासर नें पृथ्वी सिंह सामोर के गढ में लाकर गढवी पण  की लाज रखी और तांतिये को इज्जत के साथ दक्षिण में पहुंचाया  उनके सहयोगी सिपाहियों को बीकानेर के राजा से छुड़ाकर सच्चे अर्थों में शरणाई साधार कहाया.प्रो.भंवर सिंह सामोर ने अपनी पुस्तक मे लिखा है कि, क्रोध में आए अंग्रेजों ने गढ़ को बारूद से उड़ा दिया आज भी धर कोठ की बाढ को खोदते वक्त तोपों के गोले निकलते हैं इस प्रकार शंकरदान  के गौरो के साथ  विरोधी की घमसान में सबसे ज्यादा कीमत उनके बड़े बाप के बेटे भाई पृथ्वीसिंह सामोर ने चुकाई.

महेन्द्र सिंह चारण
चारणाचार पत्रिका

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