Friday 12 April 2019

माता चामुंडा का त्रिभंगी छंद

माता चामुंडा का त्रिभंगी छंद
कवि दुला भाया "काग"
॥दोहा॥
चंड मुण्ड मारण सगत, वारण धर विकराळ।
कोप खडग धारण करी, कारण असुरां काळ॥1॥
॥छंद त्रिभंगी॥
कर रुप कराळं, नहद नताळं, भगतां भाळं, विकराळं।
डं डाक डमाळं, कोप कमाळं, बाज बताळं, पडताळं।
खटके ललखाळं, जोम भुजाळं, त्रोडण ताळं तिण तुंण्डा।
खडगां धरखंडा, असुर उतंडा, भय भ्रेकुण्डा, चामुण्डा।
जिय चोटीला री चामुंडा जय सुंधा वाळी चामुण्डा॥ 1 ॥
कोपां नभ कडकत, धरणि धडकत, खड्गां खडकत, भड भडकं।
रुंड मेखां रडकत, मेर सु म्रडकत, थडडड थडकत, अस अरकं।
फेंफड सुर फडकत, गोतल गडकत, भय भ्रत अण भत झर झुंडां।
खडगां धरखंडा, असुर उतंडा, भय भ्रेकुण्डा, चामुण्डा।
जिय चोटीला री चामुंडा जय सुंधा वाळी चामुण्डा॥ 2 ॥
मचियो रणमट घट, हाँकल हट हट, मदछक रमझट, लेत मया।
खडगें धर खळखट, पडधर प्राछट, बोंभल आसुर तब धखिया।
वळिया सुर वटजट, करडत कट कट, ताकट त्रटघट, भुजदंडा।
खडगां धरखंडा, असुर उतंडा, भय भ्रेकुण्डा, चामुण्डा।
जिय चोटीला री चामुंडा जय सुंधा वाळी चामुण्डा॥ 3॥
रण पड लग रकझक, हयदळ हकबक, देतां दकमक, ले खडगां।
समरें थइ सकमक, कोप सकत कक, रुण्ड मुण्ड फगवत देव डगां।
धद रगदळ धकधक, भरत अमख भख, भासत भखभख, भरकुंडा।
खडगां धरखंडा, असुर उतंडा, भय भ्रेकुण्डा, चामुण्डा।
जिय चोटीला री चामुंडा जय सुंधा वाळी चामुण्डा॥ 4॥
धर धोमस धर धर, चंड असुर सर, व्योम अफर फर, फोड धखै।
थडडत हर थरथर, भरत अभर भर, भाखत हरहर, भरु मुखै।
दकळं अरि डरडर, भै पद भरभर, ज्वाळ त्रशूळ जर, भुमंडा।
खडगां धरखंडा, असुर उतंडा, भय भ्रेकुण्डा, चामुण्डा।
जिय चोटीला री चामुंडा जय सुंधा वाळी चामुण्डा॥ 5॥
भेंकर भुडंड, त्रुटत मुंडड, दधियळ माटड फूट जिसा।
असमांण सु उडअत, गडडड गुडअत, कवरां कुदत, धू धडसा।
तव त्रोडत आंतड, भरखत भेजड, कडकड डाढड, जमडढ्ढां।
खडगां धरखंडा, असुर उतंडा, भय भ्रेकुण्डा, चामुण्डा।
जिय चोटीला री चामुंडा जय सुंधा वाळी चामुण्डा॥ 6 ॥
गाढां मुख गडगड, पाड अपड पड, ले धर जड पड दैत मळै।
अडपाड अवड चड, आंकश अरियड,तेशर खागड, मांड गळै।
जोधड असि जडडड,रगदळ दडडड, धड हड रड वड, रिण रुण्डां।
खडगां धरखंडा, असुर उतंडा, भय भ्रेकुण्डा, चामुण्डा।
जिय चोटीला री चामुंडा जय सुंधा वाळी चामुण्डा॥ 7॥
पड ढांह असुर पट, हांकल हट हट, त्रोड अत्रड त्रट, काळ जडं।
धूंसा बज धिधिकट, पण घर प्राछट, बेशक अरियट, धर धजडं।
सो वळदळ संकट,”काग”अकट कट, थाप सिंहण थट, द्वीतुण्डा।
खडगां धरखंडा, असुर उतंडा, भय भ्रेकुण्डा, चामुण्डा।
जिय चोटीला री चामुंडा जय सुंधा वाळी चामुण्डा॥ 8॥
॥छप्पय॥
छूट कुलीश गय शक्र, वक्र ईंदु धर ईकवक।
धरनि धमम धरकंति, कमठ फनि रुदन शुकर धक।
उडुगन गन तज अर्श, दर्श रन रन घर दरसत।
सकल प्रभंजन चलत, वृद्धि धर पर धन वरसत।
भर गयो घोर रव भूमि नभ, आफताब श्रीहत अडर।
चंडी सु कोप कर असुर सर, धोम निकर कर खडग धर॥ 1 ॥
गयंद दिग्गज डर गये, नचत हर हर कर निरबल।
गो लच्चक चल गई, वितल हिल गये तलातल।
गिरिगण खळभळ गये, मुण्ड चल गये व्योम तल।
अढल सुभट ढल गये, हुवै अनचल दधि हलबल।
कलमलत चराचर कोप से, भट्ट थट्ट मन मोद धर।
चंडी सु कोप कर असुर सर, धोम निकर कर खडग धर॥ 2॥
घोर नाद भो घट्ट, थट्ट भय असुर सु थर थर।
रमणि सुर जट रट्ट, हट्ट धर वट्ट इष्ट हर।
लोह खडग कस लट्ट, खट्ट द्वादश कोटि खस।
तुण्ड अगन रन तट्ट, हट्ट भीरु भट मुनि हस।
कथ काग पंच कंपन लगै, हरि बिरंचि अरु चकित हर।
चंडी सु कोप कर असुर सर, धोम निकर कर खडग धर॥ 3॥
अचल ध्रुव डिग गये, मिहिर डिग गये छदिन मग।
गोतल फनि जग गये, गगन मंडळ भय डगमग।
गोवर शम डग गये, महल पर गये धरती पर।
गिरधर पड जग गये, थिर नंह होवन थर थर।
हर गिरि श्वसुर गिरिहर हलत, अंबर जळ चळ गई अधर।
चंडी सु कोप कर असुर सर, धोम निकर कर खडग धर॥ 4॥
चकवकित गन असुर, चकित थर थरत चराचर।
थंभ भूमि भय थकित, लोल जळ सायर लर थर।
वात करत नंह वहन, जंप गय सकळ तटनि जळ।
विबुध वृन्द भय विकल, मेरु गिरि भये सु खळभळ।
ब्रहमांड अंड हल बल विपुल, झुंड झुंड नर फेलि जर।
चामुंड रक्त भय मुण्ड सर, करन खंड असि तोल कर॥ 5॥
कुटिल भ्रोंह करि कोप, जगत जननि जब जुट्टीय।
बदन रक्त बैराट, गगन मंडळ तब कुट्टीय।
अवनि व्योम आकाश, प्रबळ भुजबळ वपु पुरिय।
खंड खंड खळ निकर, द्वीजपति ग्रह सब दुरिय।
भुजदंड वृंद दिग भर गये, हतबळ भय निशिचर हहर।
चामुंड रक्त भय मुण्ड सर, करन खंड असि तोल कर॥ 6॥
कडड दंत कडकडत, खपर अनहड रन खडडत।
जडधर गण जडपडत, गडड भेंकारव गडडत।
लचकत थिर लडथडत, हडड धख धख नद हालत ।
कुंदक इव दडवडत, हलक धडडड पड हुसकत।
हसमसत तबक नारद हसत, धरनि रसातल जाति धंस।
चामुंड मचक पद मुण्ड शिर, कडक घाव किय दंत कस ॥ 7॥
~~कवि दुला भाया “काग”
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