Saturday 11 February 2017

धनराजजी महेडु

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                           धनजी महेडु
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कई जातियों के नाम व्यक्ति विशेष के नाम पर या किसी गांव पर जाति का नाम प्रचलित होता रहा है मेंड़ोजी नामक चारण को जैसलमेर में सूनी व उजाड़ जमीन सांसण में मिली जहां पर उन्होंने अपने नाम पर "मैड़वा" नामक गांव स्थापित किया। कालान्तर में यहां से अन्यत्र गए हुए चारण महेडु जाति के चारण कहलाये। यहां से चलकर एक चारण ने "गूगड़ी" नामक ग्राम प्राप्त किया जो वर्तमान हिंद-पाक की सरहद पर पाकिस्तानी सीमा में स्थित है। अब वहां कोई चारण नहीं रह रहा है। यह ग्राम मेंहडु चारणों के ग्राम सुहागी व बाखासर के पास स्थित हैं।  उस काल में धनजी मेहडु अश्व तथा गो धन का बड़ा व्यापारी था। नगरपारकर  (पारीनगर) पर कोळी ध्रोळ मकवाणा के राज्य में धनजी मेहडु अस्थायी रूप से डीणसी गांव में रह रहे थे। ध्रोळ कोळी को ईन्होंने काफी घोड़े मोल बेचे जिसकी पूरी रकम बाकी थी। कुछ दिनों के पश्चात ध्रोळ मकवाणा घोड़ों की रकम अदा करने में कुछ आनाकानी कर रहा था। धनजी ने बात को समझ लिया।
डीणसी के पास ही रांणसर नामक गांव में सोढे क्षत्रिय रहते थे। वह ध्रोळ कोळी की शासन व्यवस्था से बड़े परेशान थे। वह सब उसके अधीन थे। वहां के पाटवी सोढा, नाम शायद खीमसी होगा। वह धनजी का परम मित्र था। धनजी सीधा खीमसी सोढा के पास गया और कुछ बातें करने के पश्चात कहा कि, सोढा ठक्कर! तैयार हो जा। मां भवानी तुझे 'राणपर' का राणा बनाना चाहती है।
ध्रोल कोळी के वहां 'मालणदेवी' का थान था। वह उस देवी का उपासक परम् भक्त था। इस देवी का थान डीणसी नामक गांव पर पहाड़ पर था। यह पहाड़ काळीजर डूंगर कहलाता है। सामने है विशाल कच्छ का रण। ध्रोल कोली प्रतिदिन मालण मां की सेवा पूजा-दर्शनार्थ को अकेला यहा आया करता था। धनजी ने खीमसी को कहा कि आप तलवार लेकर मेरे साथ चलो। ज्योही ध्रोळ कोळी देवी का दर्शन कर के बाहर आवे आप उसे युद्ध के लिए ललकारना और उस पर तलवार का पहला वार कर देना।
मंदिर से बाहर आने पर उस पर आक्रमण करना। मंदिर के अंदर उस पर घाव मत डालना। फिर मैं आपके पास खड़ा हूं, सब कुछ संभाल लूंगा। तथा अन्य सभी सोढो को पास में एकांत गुप्त रूप में सज-धज कर बैठा दिया।
योजनानुसार पूजा करके मंदिर से बाहर आने पर खीमसी सोढा ने उसे ललकार कर उस पर वार किया। कोळी ध्रोळ मकवाणा ने अपना बचाव कर खीमसी पर प्रहार किया। तब तक पीछे धनजी मेहडु के तलवार का प्रहार कोळी के लगा। वह चोट खाकर लड़खड़ा गया। इतने में खीमसी के प्रहार से उसके प्राण पखेरु उड़ गये। सोढो की सैनिक टुकड़ी पास में थी। उन्होंने धावा बोल कर पारकर (पारीनगर) पर अपना अधिकार कर लिया। कोळी सेना ने कुछ समय लड़कर मुकाबला किया परंतु उनको शासक की मृत्यु का संदेश ज्ञात होने पर युद्ध क्षेत्र से भाग गये।
खीमसी को 'राणपर' पर 24 गांवो का टीकायत बनाया गया। राणा खीमसी ने धनजी को चार गांव 1.डीणसी, 2.खारडिया, 3.राठी, और 4.उडेर. सांसण तांबापत्र बनाकर दिये। कई मान-सम्मान के अतिरिक्त धनजी को किसी भी मांगलिक कार्य में सबसे प्रथम निमंत्रण भेजना तय किया गया तथा भोजन में सर्वप्रथम उनको करवाने के पश्चात अन्य के लिए थाल लाने का प्रावधान किया गया। 'राणपर' का स्वामी बनने पर इन सोढे के वंसज मेंहेडु चारणों का ऐहसान सदा याद रखते है।
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      उपरोक्त माहित:- चारण दिग्दर्शन ग्रथ से प्राप्त हुई
   
                ​लेखक:- शंकरसिंहजी आशिया
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