Thursday 16 February 2017

सोहागी गाँव का इतिहास​

.               ​ *सोहागी गाँव का इतिहास​*
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*​गाँव- सोहागी, तहसील- सेड़वा, जिला- बाड़मेर, राजस्थान​* ______________________________________
विक्रमी सवंत 1580 में मेंहडू शाखा के चारण भादाजी मेंहडू को गंगाजी सोढा द्वारा सोहागी गाँव भेंट स्वरूप प्राप्त हुआ। सोहागी का तत्कालीन नाम मेंहडु वास था।
भादाजी मेहड़ू की सुपुत्री सोहागीबाई का विवाह महिया शाखा के चारण से हुआ। सुहागीबाई के पुत्र का नाम मांडणजी महिया था। माडणजी महिया से सोढा राजपूतों ने घोड़ो की माँग की माडणजी ने यह माँग अस्वीकार कर दी। तत्पश्चात सोढा राजपूत घोड़ों को षड्यंत्र पूर्वक चोरी करके ले गये।
जब उक्त घटना घटी तब माडणजी सामाजिक कार्य से अन्य गांव गए हुए थे इस घटना की जानकारी उन्हें संदेशवाहक द्वारा भेजी गई। माडणजी घर आकर जब विश्वस्त हुए कि घोड़े बाखासर के सोढा राजपूत ही ले गए हैं तो बाखासर गांव जाकर गले में कटार पहन ली। ( चारणों का सत्याग्रह का एक प्रकार  जिसमें स्वयं ही अपने गले में कटार को प्रवेशित करवाया जाता है।) माडणजी इसी अवस्था में सोढा राजपूतों की कोटड़ी पहुंच गये।
यह दृश्य देखकर सोढा राजपूत अत्यंत भयभीत हो गये इसकी सूचना माडणजी के ननिहाल पक्ष (मेंहडु चारण) को दी। माडणजी के ननिहाल पक्ष के लोग और वंशज जाकर माडणजी का पार्थिव शरीर ले आये।
यह दुःखद समाचार माईके आये हुए सोहागीबाई को सुनाया गया। सोहागीबाई के कथनानुसार माडणजी की मृत देह को वर्तमान सोहागी गांव की पश्चिम दिशा में जहां से बाखासर दृष्टिगोचर होता है, धोरे पर (धोरा= टीला, टीबा) चित्ता पर रखा गया। अपने पुत्र माडणजी के मस्तिष्क को गोद में लेकर सोहागीबाई विक्रमी सवंत 1585 में अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को सती हो गयी।
सोहागीबाई ने बाखासर के सोढा राजपूतों को श्राप दिया कि आपके राज का पतन होगा। माताजी के वचन सत्य सिद्ध हुए और सोढो के भाणेज चौहान राजपूतों ने आक्रमण कर के सोढो से जागीरी छीन ली।
माताजी ने पीहर पक्ष के लोगों को आज्ञा दी थी कि यह गांव मेरे नाम से बसाने पर आप सभी सुखमय रहेंगे। माताजी की कृपा से सोहागी के चारण आज भी सुखी और साधन सम्पन्न है।
माताजी जिस स्थान पर सती हुई उस स्थान पर वर्तमान में थान है। जहां आज भी माताजी की पूजा होती है।

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​सोढे भादा नै सम्पयो,जस कारण घण जाण।​
​दत सुहागी सासण दियो,रीझै गांगे राण।।11​

​संवत पनरै सौ अस्सी,सातम नै भृगु सार।​
​सोढै भादा नै सम्पयो, दत गांगै दातार।।​

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*आई श्री सुहागीआई झमर जळी सती हुए इसकी ऐतिहासिक सम्पूर्ण माहिती इस गाँव के प्रतिष्ठ चारण कवि श्री शंकरदानजी महेडु तथा इनके पुत्र कवि श्री सामलदानजी महेडु के जो भी विद्वान कवि है उनके गाँव के अन्य वडील महेडु शाखा के चारणों की हाजरी में दी हुई है।*
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लेखन भंवरदान मेहङू साता की प्रेरणा से दिनेशदानजी आसिया बंधली नाडा(भलूरी)
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