Monday 3 April 2017

कविस्वर वृजमालजी महेडु रचित विभा विलास के दुहे चैत्री अष्टमी नवरात्री के दीन स्मरण करे

कविस्वर वृजमालजी महेडु रचित विभा विलास के दुहे चैत्री अष्टमी नवरात्री के दीन स्मरण करे

करनि करुना करनजे। वरनि वेद विसेश ।।
मोकुं सोवर दीजिये । वरनो जाम विभेश ।।

शिवा सुलखमी सारदा । सरजण धरन संसार ।।
त्रसकत हरणी ताप त्रे । त्रगुणातम जगतार ।।

त्रगुण सरूपी ते रमे । व्यापक घटघट वेश ।।
जल थल इंड आकाशमें । अकल रूप आदेश ।।

ब्रह्मा विसन महेश वे । पार न कोइ पाय ।।
तोरी गत जांणे तुंही । महासकत महामाय ।।

आसापुरा उमया क्षिृया । करिये मुज कृपाह ।।
जदु वंसी जस जांणवा । इंछूं मन उच्छाह ।।

गोकल वस गोकुल पति । अकल ईश अवतार ।।
जनम लियो वसुदेव घर । भोमी उतारन भार
कहु चरित सब कृष्णके ।  बाढ़े गृंथ पृमान ।।बरनी सुछम बातसो । जया मति अनुमान ।।

वृजमालजी महेडु

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