Wednesday 25 January 2017

कवि लूणपालजी (लूणकरणजी महेडु)

.     *कवि लूणपालजी (लूणकरणजी महेडु)-*

ये मेहडु शाखा के चारण कवि थे। ये गुजरात स्थित मारवी गोद के निवासी थे। यह गांव इन्हें झाला राजपूतों से प्राप्त हुआ था जो हळवद के पास है। लूणकरण मेहड़ू मेवाड़ के महाराणा मोकल के समकालीन थे। राजस्थान के ब्रह्मणों ने राणा मोकल को चारण जाति के विरोध बहका रखा था की यह जाती देवी आवङ को भेसे की बली  चढ़ाने ने एवं उसका रक्त चखने के कारण अछूत है।

अतः चारणों से मिलने के बाद उन्हें स्नान करना चाहिए। महाराणा ऐसा ही करने लगे। जब यह बात लूणकरण को ज्ञात हुई,  तो वे राणा मोकल से मिलने हेतु चित्तौड़ आऐ, इनसे मिलने के पश्चात मोकल ने नीयमानुस्वार स्नान किया। यह देखकर लूणकरण ने सात बार स्नान किया। मोकल को जब यह पता चला तो उसने कवि लूणकरण को बुला कर कारण पूछा।
कवि ने उत्तर दिया कि- "आप नित्य गौ हत्या करवाते है अतः आपसे मिलना सर्वथा अपराध है।" राणा ने उनसे पूछा कि कैसे? तब लूणकरण महेडु ने कहा कि - आप स्वर्ण गाय का दान करते है और ब्रह्मांड उसके टुकड़े कर बाटते है । जब महाराणा ने ब्रह्मणों को बुलाकर पूछा तो उन्हें ज्ञात हुआ कि दान में दी गई सर्वण गाय के टुकड़े कर वे परस्पर बाट लेते है। लूणकरण महेडु की युक्ति पर महाराणा को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने चारणों का यथोचीत सम्मान कर लूणकरण महेडु को मेवाड़ में बाड़ी और सोजत के पास राजोला गाँवो की जागीर भेट की। इनके द्वारा रचित फुटकर रचनाएं उपलब्ध है।

*उपरोक्त माहिती- चारण समाज के गौरव पुस्तक से प्राप्त हुई।​*
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.                         *लेखक*
               *जगदीश रतनु दासोड़ी*

*टायपिंग - हीरदान देवल पूगल*
          *97851 47952*

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