Friday 6 January 2017

कवि वंश परिचय

                    कवि  वंश परिचय

'महेडवा' ग्राम में निवास करने से महेडु कहलाये, महेडवा गाव में आकर चापाजी  महेडु ने बाड़ी पाई और चापाजी के स्यामदासजी पुत्र हुए और स्यामदासजी के धर्मदासजी धीरजी, चंद्रावतजी किसनसिंह और मेहकरणजी पाँच  पुत्र हुए, मेहकरणजी बड़े विद्धवान थे। उदयपुर के महाराणा श्री उदयसिंह ने अपने छोटे पुत्र जगमाल को युवराज बना दिया था। वि. स. 1628 में महाराणा श्री उदयसिंह का स्वर्गवास हो गया और श्री जगमाल को उदयपुर की राजगद्दी पर बैठा दिया, परतु श्री जगमाल आयोग्य सासक थे, इसलिए मेवाड़ के सामंतो ने महाराणा श्री प्रतापसिंह को गद्दी पर बैठाकर राज चलाने का भार सोप दिया था।
इस बात पर जगमाल क्रुद्ध हो गए और उदयपुर छोड़ गए। उन्होंने मन में यही निश्चय किया की सेना का सगठन करके उदयपुर पर वापिस अधिकार जमाउगा। इस बात को लेकर के पहुचने वाले व्यक्ति की तलाश में रहे।
कुछ समय बाद महेडु मेहकरणजी मिले जिन से अर्थ और आजीवीका प्राप्त करने का विचार प्रगट किया।
इस बात को सुनकर महेडु मेहकरणजी दिल्ही गये और अब्दुल रहीम खानखाना उनके परिचित थे, से मिले और महाराणा श्री जगमाल के जहाजपुर की चोरासी का पट्टा करवाने हेतु अनुरोध किया।
महेडु मेहकरणजी की बात सुनकर खानखाना नवाब व महेकरणजी दोनों दिल्ही दरबार में उपस्थित हुए। उस वक्त इजलास भरा हुआ था।  राजा महाराजा व नवाब जो इजलास के सदस्य थे सब लुमा पकड़ पकड़ कर खड़े थे, दोपहर के समय विश्राम लेने हेतु दरबार में कुर्सीया खाली पड़ी हुई थी। महेडु मेहकरणजी आकर के कुर्सी पर बैठ गए।  इस पर दरबारीयो ने आपत्ति प्रगट की कि हम महाराजा  इजलास में हजूर के सामने खड़े है ओर ये चारण महेकरण कुर्सी पर बेथ गया है जो उचित नही है। इस आवाज को सुनकर बादसाह अकबर ने खबर  नवीश को भेजकर मेहकरणजी से कहलवाया कि आप कुर्सी से खड़े हो जाइये। और जो अपनी बात कहने के लिए आये है वो कह दीजिये।
इस पर महेडु महेकरणजी ने ये दोहा कहा-

*पगे न बळ पतसाह, जीभा बळ म्हारे जबर।*
*अम्ह जस अकबर काह,बैठा बैठा ई बोलस्या।।*

यह दोहा सुनकर बादसाह प्रसन हुआ और महेडु मेहकरणजी को जाडा की पदवी देकर इस दोहे से समानित किये।
  
*धर जड्डी अम्बर जडा, जड्डा महेडु जोय।*
*जड्डा नाम अल्लाह दा, अवर न जड्डा कोय।।*

इसके बाद में खानखाना नवाब ने मेहकरणजी का दरबार में आने का कारण बादसाह के सामने पेश किया।
बादसाह ने कहा जाडाजी के कहने से  जहाजपुर की चौरासी का पट्टा महाराज श्री जगमाल के नाम कर दो।
और इनको भी ये चाहे जितनी जागीर दे दो, इस पर
जाड्डाजी ने ये दुहा कहा-
    
*अकबर देवण आखतो, चारण लेण न चात।*
*पारस पट परसावहु, छत्रपती हिन्दू छात।।*

आप जहाजपुर की चोरासी जो महाराणा जगमाल को दे रहे हो वो मेरे लिए ही मान लुगा।
जाड्डाजी ने वापीस दिल्ही से आकर जहाजपुर का पट्टा महाराणा श्री जगमाल को सम्भला दिया।  जहाजपुर उस समय बादसाही अधिकार में था।  उससे से श्री जगमाल की दोहाई फेर दी गई।
कुछ समय बाद जब श्री जगमाल के पास सेना एकत्रित हो गई तो सिरोही पर चढ़ाई कर दी और जहाजपुर की चौरासी जाड्डाजी को सम्भला दी गई।
जाड्डाजी ने जहाजपुर पर कुछ समय राज्य किया।  बाद में सरसिया नामक गाव में अपने अधिकार में रखा और बाकी गाव वापिस महाराणा जगमाल को सपूर्द कर दिए। जाड्डाजी खुद श्री जगमाल की सेना में बने रहे। बादसाह अकबर ने जगमाल सिसोदिया सिरोही को सिरोही के राव सुरताण देवड़ा के विरुद्ध भेजा था। जाड्डाजी उस युद्ध में वीरता से  श्री जगमाल का सहयोग देते हुए वि.स. 1640 कार्तिक शुक्ला 11 को युद्ध में काम आ गये।
जाड्डाजी के वंसज जाड़ावत कहलाये, जिनके गावो की नामावली  इस प्रकार है-  उदयपुर राज्य में बाड़ी का हिस्सा,   सरसिया, देवरी, खेरी, भाणपूरा नामक गाव, जयपुर राज्य में जेथलिया, बूंदी राज्य में ठीकरीया, भाणपूरा, लीलेड़ा नाम के गाँव, कोटा राज्य में खेङला व मऊ नाम के गाव, जोधपुर राज्य में सोढावास व मनडावरा व देवलिया, प्रतापगढ राज्य में सचेई नामक गाव।
ये गाँव जाड्डाजी के वंसज भोगते आये थे।

*अम्बा मारी महडु कुल महमाई ।*
*रमो नोरता सुमण्ड चालराई ।*
*मनरंग थळ सू आया माता, महड़वा गाँव रे माहि ।*
*आगे चरण आपर हेटे, बाड़ी सुबस बसाई ।।१।।*
*सरस्यो, सोडावास, देवरी, खेरी खेड़ला माही।*
*दिनकर पुर जेथलिया दरसो, संचेही सुरराई ।।२।।*
*लीलेड़ेधज लाल फरूकै, मोद मंडावरा माही ।*
*हरदम मऊ हरष कर राजो, ठीकरिये गढ़  ठाई ।।३।।*
*महेडु खड़िया चाकरमाता, चण्डी रख छत्र छई ।*
*महडु मदन मौद कर माता, चिरजा भेट चढाई ।।४।।*

महेडु मेहकरणजी जाडा के चार भाई और थे। इनके वंसज बाड़ी में भी है, और राजोलाखुर्द, झुठा, जोधावास, बोरूदा में भी है। इसके अतिरिक्त मारवाड़ में कुड़की, बीङकावास, स्यामली, बजाकड़ा आदि गाव महेडुओ के है।  हम सब महेडवा से बाड़ी आये और बाड़ी से इन गावो में बसे हुए है। जाडाजी के पुत्र कल्याणदासजी के पुत्र कर्मचन्दजी को वि.स. १६९७ में आसोज सुदी १० मुकाम अजमेर में राजा श्री रायसिंह राज टोडारायसिंह से जेथल्या गांव छः  घोडा की जागीर मिली। बाबासा कर्मचन्दजी को गांव भाणपूरा बूंदी नरेश से जागीर में मिला था। इसी वंस में महेडु प्रभुदानजी जाडावत का जन्म हुआ। जो एक बहुत बड़े दानी हुए। उस समय उदयपुर के शासक महाराणा श्री भीमसिंह के राजकुमार का जन्म हुआ। उस समय प्रभुदानजी पीछोला पर ठहरे हुए थे। राजकुमार के पैदा होते ही बधाई देने वाले पहुचे। उन्हें भी बधाई दी गई। महाराणा के पुत्र पैदा होने की ख़ुसी में अपने जो दस घोड़े बहुत कीमती थे, उन्हें बधाई देने वालों को दे दिये।  इस बात का पता महाराणा श्री भीमसिंह को चला तो उनके श्रीमुख से दोहा निकला-

*भीम कहे चारण भलो, महेडु साँचे मन।*
*दीन्हा 'प्रभे' दूथिया, दस घोडा एक दन।।*

इसी वंश  में महेडु कृपारामजी जाड़ावत हुये। शाहपूरा के राजा श्री उम्मेदसिंह ने अपने लघु पुत्र जालिमसिंह को युवराज बनाने के कारण अपने बड़े राजकुमार अदीतसिंह और पौत्र रणसिंह को मारने के लिए कामलिया नामक यवन को भेजा।  कालमिया ने ज्यो ही रणसिंह पर खङग प्रहार करना चाहा, परन्तु उसी समय रणसिंह के पुत्र भीमसिंह के हाथों से वह यवन मारा गया। राजा श्री उम्मेदसिंह का विचार पौत्र प्रपौत्रादि को मारकर जालमसिंह को युवराज बनाने का था। उसी समय महेडु कृपारामजी जाडावत ने जाकर राज सभा में यह दोहा सुनाया-

*मिण चुण मोटाड़ाह, तै आगे खाभा बहुत।*
*चेलक चीतोड़ाह, अब तो छोड़ उम्मेद सी*

इस दोहे से राजा का ह्रदय परिवर्तन हो गया और शाहपुर का राज कुटुंब मृत्य के मुख में जाने से बच गया।  देवलिया प्रतापगढ़ के शासक महारावत श्री उदेसिंह ने महेडु गुलाबसिंहजी जाडावत की बुद्धिमानी से प्रसन होकर पैर में स्वर्ण आभूषण व सचेई नामक गांव जागीर में दी। इनके सम्बध में यह दोहा प्रसिद्ध है-

*सुला गोला सोहिता, दारु मांस पुलाब।*
*जिमावे जाडाहरो, गायड़ मल्ल गुलाब।।१*

जाडा महेडु के वंशजो में स्वनाम धन्य महादान नामक वीर एवं श्रगाररस के सिद्धहस्त कवि हुए है। कुलदेवी चालकनेच की रोमकद जाती के छंद में की गई उनकी स्तुति तो बालको के रोग निवारण हेतु मन्त्र स्वरूप मानी गई है। उस स्तुति के प्रारंभ के दोहे इस प्रकार है-

*चाळराय रै चाळरी, झाली सेवक झब।*
*वळीयो दिन टळीयो विघन, आगण फळीयो अब।।*
*दे झंझेड़ी रोग दुख, पग बेड़ी खळ पेच।*
*तू  बालक तेड़ी तठे, नेड़ी चाळकनेच*

जोधपुर के विधाप्रेमी महाराजा मानसिंह ने महादान महेडु की प्रतिभा का सम्मान करते हुए उन्हें अपनी पसंद का गांव मांगने की छूट दे दी तब महादान महेडु ने अपना मंतव्य इस दोहे के माध्यम से प्रकट किया-

*पांच कोस 'पचोटियो', आठ कोस 'आलास'।*
*नानेरा म्हारा नकै, समपौ 'सोढावास'।।*

इसी वंश में आगे ग्राम जेथलिया में श्री साहिबदानजी हुए। रावराजा श्री फतेहसिंहजी उणीयारा ने उनका स विधि सम्मान किया और उनकी प्रशंसा में यह दोहा कहा-

*साहिबा थारा अंक सह, घड़िया बेह घड़ाव।*
*जाणक कंचन में जिके, जड़िया रतन जड़ाव।।*

श्री गोपसिंहजी जाडावत के ऊपर दुश्मनो ने अचानक हमला बोल दिया।
हमला बोलने वाले दुश्मनो को गोपसिंहजी ने युद्ध में ललकारा और थोड़ी सी देर में ही सभी दुश्मनो को रण खेत में सुला दिया। इनकी बहादुरी देखकर कविवर पृथ्वीसिंहजी महियारिया राजपुरा ने यह दोहे कहे-

*समत इक्यासी जेठ सूद, बारस अरु रविवार।*
*जाडा हर किन्ही जब्बर, बाही खाग बकार।। १*
*आडा शत्रु आविया, कर गाढ़ा हद कोप।*
*जाडा हर किन्ही जब्बर, गाढ़ा दिल से गोप।। २*
*जाडा महेडु जंग में, रण गाढा पग रोप।*
*खाळ बहाया खून रा, घणा रंग तोय गोप।।३*

वर्तमान समय में मऊ ठाकुर साहब श्री पीरदानजी जाडावत ने वि. स. १९९६ के भीषण दूर्भीक्ष के समय अपने एक हजार याचको के लिए बारह महीनों तक भोजन व्यवस्था की । इनके बारे में यह दोहे प्रशिद्ध है-

*तरवर गंगा तीर, ताकव घुणी तापियो।*
*ते पायो तकदीर, पीर महड़वा पाटवी।। १*
*पीरा कहवे पात, इल ऊपर रहिज्यो अमर।*
*मग जण रो मां बाप, कलजुग में दूजो करण।।२*

इसी वंस में शकरदानजी का जन्म वि. स. १९८६ मिती भादवा ७ को हुआ।
इनके पिता श्री भेरूदानजी थे।
पिता श्री का स्वर्गवास १९९८ में मिति आसोज सुदी ८ को हो गया। उस समय इनकी उम्र १२ वर्ष की थी।

*उपरोक्त माहिती- श्री करणी कला प्रकाश ग्रन्थ से प्राप्त हुई।​*
*​रचियता:-  स्व. श्री शंकरदानजी महेडु जाडावत​*

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