Thursday 27 October 2016

कविस्वर वृजमालजी महेडु रचित विभा विलास

कविस्वर वृजमालजी महेडु रचित विभा विलास

करनि करुना करनजे। वरनि वेद विसेश ।।
मोकुं सोवर दीजिये । वरनो जाम विभेश ।।

शिवा सुलखमी सारदा । सरजण धरन संसार ।।
त्रसकत हरणी ताप त्रे । त्रगुणातम जगतार ।।

त्रगुण सरूपी ते रमे । व्यापक घटघट वेश ।।
जल थल इंड आकाशमें । अकल रूप आदेश ।।

ब्रह्मा विसन महेश वे । पार न कोइ पाय ।।
तोरी गत जांणे तुंही । महासकत महामाय ।।

आसापुरा उमया क्षिृया । करिये मुज कृपाह ।।
जदु वंसी जस जांणवा । इंछूं मन उच्छाह ।।

गोकल वस गोकुल पति । अकल ईश अवतार ।।
जनम लियो वसुदेव घर । भोमी उतारन भार
कहु चरित सब कृष्णके ।  बाढ़े गृंथ पृमान ।।बरनी सुछम बातसो । जया मति अनुमान ।।

वृजमालजी महेडु--वजापर जामनगर

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