Sunday 23 October 2016

कानदासजी महेडु

डॉ. आर. के. धारैया ने '१८५७ प्द ळनरंतंज' नामक अंग्रेजी ग्रंथ में भी पूर्वोक्त जानकारी दी है और अपने समर्थन के लिए 'पोलिटिकल डिपार्टमेंटल वॉल्यूम्ज' ;च्वसपजपबंस क्मचंतजउमदजंस टवसनउमेद्ध से आधारभूत सन्दर्भ प्रस्तुत करके यह जानकारी दी है। इससे सच्ची जानकारी मिलती है कि कानदास महेडु ने १८५७ के स्वातन्त्र्य-संग्राम में अपना विशेष योगदान किया था। अलबत्ता यहाँ ज्ञदंदकें बींतंद और च्ंसं का अंग्रेजी विकृत नाम है।
अंग्रेजों ने हमारे यहाँ अनेक गाँवों के नाम अपने ढंग से रखे हुए हैं। इसके लिए यहाँ बोम्बे, बरोडा, खेडा, अहमदाबाद, भरूच, कच्छ इत्यादि नामों को देखा जा सकता है। महेडु अर्थात् कानदास चारण और च्ंसं अर्थात् पाला एक ही हो सकते ह। 'चरोत्तर सर्वे संग्रह' के लेखक पुरुषोत्तम छ. शाह और चंद्रकांत कु. शाह भी यह उल्लेख करते हैं कि ''कानदास महेडु ः व. सामरखा ज. १८९३ संत कवि के रूप में सुप्रसिद्ध हुए थे। १८५७ के आन्दोलन के बाद उनको आंदोलनकारियों की मदद करने के कारण पकड लिया गया था। कहा जाता है कि कवि ने जेल में देवों और दरियापीर की स्तुति गा-गा कर अपनी जंजीरें तोड डाली थीं। इसी चमत्कार से प्रभावित हो कर अंग्रेज सरकार ने उनको छोड दिया था।

करणदान मिसन पूगल बीकानेर
+917229862675.

Share:

0 comments: