Friday 4 August 2017

हणूंतसिंह मेहडू

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"क्रांतिवीर चारण कवि शंकर दान सामोर "
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*संकरीये सामोर रा*
*गोळी हन्दा गीत*
*मिंतर साचा मुलक रा*
*रिपुंवा उलटी रीत*

आजादि से पहले जिन मामूली लोगों को बोलने का हक नहीं था उनकी आवाज को वाणी दी शंकर दान समोर ने और उस वाणी को लोगों के कानों तक पहुंचाई , जब कहने सुनने से काम नहीं चलता दिेखा तब शंकर दान सामोर आगे वान हुए, लोगों को नया रास्ता बताया राज और समाज की लड़ाई में खुलकर आ गये .सत्याग्रह धरना की मांजल को पार करते करते शंकर दान  सन 1857 के महा संग्राम तक पहुंचे |
शंकर दान गोरी सत्ता के विद्रोही विप्लवी क्रांतिकारी कवि थे उनकी कविता में अंग्रेजो के खिलाफ राजस्थान के लोगों के मन में रोष को विस्फोट के रूप में प्रकट करने की क्षमता थी वह कवि के रूप में देश पर आए हुए अंग्रेजी गुलामी के संकट से समाज को सूचित करते हुए युग चारण के रूप में समाज की रखवाली करने में पीछे नहीं रहे सन 18 57 के स्वतंत्रता संग्राम में नए नए आयामों की ओज भरी ऐसी निडर अभिव्यक्ति दी कि लोगों ने उन्हें "सन सत्तावन का कवि" कहकर सम्मान दिया | राजस्थान में सबसे पहले अंग्रेजों के सामने पांव रोकने वाले जो जंवामर्द थे बठोठ पाटोदा सीकर के डूंगर जी जवार जी . डुंगजी को आगरा की जेल तोड़कर छुड़ाने में जो वीर  थे वह खुमाण सिंह लोडसर कान्हा सिंह मलसीसर ,जोर सिंह मीणा उजीण सिंह मिगणा  धाहरा मेहडू साखा  के चारण हणूंत सिंह भोमसिंघोत , चतुर सिंह नरुका और करण मीणा बालों खवास इत्यादि थे . आगरा की बेड में उजीण सिंह और हणूंत सिंह मेहडू काम आये .
उनकी याद में शंकर दान जी सामोर  के कहे हुए मर्सिए आज भी कोढ़ से कहे और सुने जाते हैं *चितकर  सूरज चलेह* *गढवी गढ़ भेळर  गियो*

*मेहडू राण मिलेह*
*एकर हणूंत आवजे*

संग 1857 के युद्ध में संपूर्ण देश मे अंग्रेजी सत्ता को चुनौती देने वालों में महावीर *तात्या टोपे* ही था ,उस महावीर तांतिया को अपनी मुसीबत के समय जो मदद शंकर दान सामोर ने कि वह इतिहास में सोने के अक्षरों में लिखी जाएगी . चारों ओर से निराश तात्या टोपे मदद की आस में शेखावाटी की तरफ आया मदद के भरोसे लक्ष्मणगढ़ के किले में गिर गया लक्ष्मणगढ़ के किले से छूटते ही कहीं पर मदद नहीं मिलती देखी तो शंकर दान बोबासर नें पृथ्वी सिंह सामोर के गढ में लाकर गढवी पण  की लाज रखी और तांतिये को इज्जत के साथ दक्षिण में पहुंचाया  उनके सहयोगी सिपाहियों को बीकानेर के राजा से छुड़ाकर सच्चे अर्थों में शरणाई साधार कहाया.प्रो.भंवर सिंह सामोर ने अपनी पुस्तक मे लिखा है कि, क्रोध में आए अंग्रेजों ने गढ़ को बारूद से उड़ा दिया आज भी धर कोठ की बाढ को खोदते वक्त तोपों के गोले निकलते हैं इस प्रकार शंकरदान  के गौरो के साथ  विरोधी की घमसान में सबसे ज्यादा कीमत उनके बड़े बाप के बेटे भाई पृथ्वीसिंह सामोर ने चुकाई.

महेन्द्र सिंह चारण
चारणाचार पत्रिका

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1 comments:

Pukhraj Singh choudhary said...

Usme sabse important role jinks tha ...lohatji jaat....unka naam Likha nhi....aap sache or sache lekhak nhi