Friday 14 July 2017

कवि कानदास मेहडू नी एक रचना* (नीचे सरळ समजूति आपी छे)

*कवि कानदास मेहडू नी एक रचना*
(नीचे सरळ समजूति आपी छे)

आगुसे धसीऐ ना, धसीऐ तो खसीऐ ना,
शुर के समीप जाके, मारीऐ के मरीऐ,
बुद्धि विना बोलिये ना, बोलिये तो डोलीये ना,
बोल ऎसो बोलिये के बोलीये सो कीजीये,
अजाण प्रीत जोड़ीये ना, जोड़ीये तो तोड़ीये ना,
जोड़ ऐसी जोड़िए के जरियानमें जड़ीये,
कहे कवि कानदास, सुनोजी बिहारी वलाल,
ओखले में शिर डाल, मोसलेसे डरीये ना

- - > आगेवानी लेवी नही अने लेवी तो अधवच्चे छोड़ी न देवी,
शूरवीर साथे जवु तो मारीऐ कां मारीये,
बुद्धिथी विचार्या विना बोलवु नही,
बोल्या पछी फरवु नही,
ऐटलु ज बोलवुं जोइये के जे वर्तन करी शकाय,
अजाण्या साथे संबंध बांधवो नहीं,
अने जो संबध स्थापित थाय तो ऐने नजीवा कारणथी तोड़वो नही, जो सबंध जोड़वानो थाय तो कापड़ पर भरतकाम करीऐ तेम ओतप्रोत थई जंवु जोइए,
कवि कानदास बिहारीदास ने कहे छे
खांडणीआमां मस्तक मुक्या पछी सांबेलाना घा थी डराय नहीं.

Share:

0 comments: