ढोला ओर मारुई
के शुरा के पंडता , के गरुआ गंभीर ;
नारी नेह नचाडीया , जे जे बावनवीर.....१
जिसने कीतने शुरा, कीतने पंडीतो ओर अनेक गरवा ओर गंभीर नर ओर नारी को पेृम पास मे बांध के नचाया ऐसे भगवान कामदेव को नमस्कार हो.
पटराणी पीगंळ तणी ; अपछर री अणहारी ;
आछी ऊमा देवडी , सुंदरी अेणी संसारी.....२
पिंगल राजा की पटराणी ऊमा देवडी ऐ संसार मे सवोॅच्च सुंदरी ओर उप्सरा सरीखी रूपवान नारी थी .
माथुं धोये मेडी, ऊभी सुरज सामंही;
ताइ उपनी पेट, मोहणवेली मारुई.....३
ऐ राणी उमा देवडी अेक वेळा त्रॅुतुस्नान कर राजमहेल के झरुखे से भगवान सुयॅ सामने खड़ी ओर देवकृपा से राणी के उदर मोहनवेल सरखी मारुई नाम की राजकुमारी जन्मी.
जनम हुवो पुत्री तणो , ओछव हुवो उपार;
उती सुदंर सरूप , अंग पदमण रे अवतार...४
ए राजकुमारी जन्म से राज्य में आनंद उत्सव हुआ , उतीसुंदर रूप सपृमाण अंगलठवाली राजपुत्री पदमणी का अवतार थी,
भुपत भायो भाटने, कीधो कोृड पशाव ;
चालीयो गढ नरवर भणी, पृणमे पींगलराव...५
उस समय राजा पिंगल उती आंनदीत हुये ओर कवि भाया बारोट को करोड पसाव से नवाज़ा दीया. तब कविश्वर राजा को सलाम नरवरगढ की ओर चले.
वरस डोढ वोळे पछी, तास अंदृ नह वुठे;
खड पाखेइ लोक खंड , वरतणी गियां अठे..६
जब देढ साल की मारूइ हुइ, उस साल मेघराजा रिझे नही, ओर घासचारे बिन व्याकुल लोक अपने मालढोर लेके दुष्काल उतारने विदेश चले.
मारुं थाकां देशमां, अेक न भांजे पीड;
को'दि थिअे वृसणुं, काफा कुफा तिड...७
मारुइ ! तारे देश की अे पीडा कभी टळी ज नहीं , सारा वरस कभी होय , बाकी तो दुष्काल ओर तीड के टोलें ए पृदेश में आते ही रहते है.
पिंगल परियाणी पुछीया, किजे त्रेवड कांइ;
कोयेक देश अटकळो, जेथ वशीजे जाइ...८
तब राजा पिंगल ने जाणतल माणुस बुलाके कहा “ कोइ उपाय करो, कोइ देश बतावो जहां हम सब दुष्काल के वसमे दीन बिताने जा बसे ".
खड जल पाखे गो रूआं , देश थियो दकाळ;
पोह करे खड पाणी पृघळ, सं णि पींगळ भूपाल..९
ऐ पोगळ देश मे सवॅत्र दुष्काल व्याप गया है , भुख तरसी गाये खड-पाणी के अभाव से भांभरडां दे रही ओर पृजाजन कहे “राजा सुणो अब कही बहोले खडपाणी वाले पृदेश दुष्काल उतारने जाइ".
-----कृमश
0 comments:
Post a Comment