Thursday, 3 August 2017

कवि री बात राखण नै, कियो जैसलमेर माथै हमलो

*कवि री बात राखण नै, कियो जैसलमेर माथै हमलो*

बीकानेर रा राव लूणकरणजी वीर, स्वाभिमानी अर उदार नरेश हा। केई जंगां में आपरी तरवार रो तेज अरियां नैं बतायो तो दातारगी री छौल़ा ई करी। राव लूणकरणजी रै ई समकालीन कवि हा लालोजी मेहडू। बीकानेर रा संस्थापक राव बीकैजी रै साथै आवणियां में एक मेहडू सतोजी ई हा। इणी सतोजी रा बेटा हा लालोजी मेहडू। सतोजी नै राव बीकाजी खारी गांव दियो।लालोजी मेहडू आपरी बगत रो मोटा कवि अर बलाय रो बटको हा।

एकर लालोजी जैसलमेर गया। जैसलमेर रावल देवीदासजी, बीकानेर राव लूणकरणजी रा हंसा उडाया अर आवल़िया बकिया। लूणकरणजी रा हंसा सुण र लालैजी नैं रीस आयगी बां कैयो कै “हुकम म्है चारण हूं अर एक चारण रै आगै आप रावजी रा हंसा उडावो अर ओछा बोलो सो सौभै नीं। पछै लूणकरणजी तो खाग रा धणी है जे ठाह लागो तो कावल़ हो सकै सो आप माठ करो।” आ सुण र रावल़ देवीदासजी नैं बंब आयगी बां कैयो “बाजीसा जे रावजी म्हारै नव री तेरै करै तो करण दिया। इता ई जे खावणा है तो खावण दिया। जैसलमेर री जितरी जमीन में रावजी आवैला उतरी जमीं म्है बामणां नैं दान दे दूंला।”

लालोजी उठै सूं सीधा बीकानेर आया। रावजी नैं मुजरो कियो पण मूंडै माथै दोघड़ चिंता। रावजी पूछियो “कहो माडधरा रा समाचार ! कांई गल़्लां है उठै री?” लालैजी पूरी बात विगत वार बताई। सुणतां ई रावजी रा भंवारा तणग्या। मूंछां माथै हाथ देय बोलिया “तो ओ म्हारो नीं म्हारै कवि रो अपमान है अर म्हारै हाथ में जितै मूठ है उतरै आपरी बात खातर ओ सीस हाजर है। दयाल दास संढायच आपरी ख्यात में लिखै “तद रावजी लूणकरणजी फुरमायो कै लालाजी, रावल़जी कही है, तौ हूं आप जासूं थे राजी रहौ।”

रावजी आपरै जोगतै सिरदारां साथै चढिया सो लूटपाट करतां थकां गड़सीसर जाय आपरा घोड़ा पाया। दोनां कानी राटक बाजियो जिण में रावल़ देवीदासजी रा पग छूटा पण बीदावत सांगैजी जाय पकड़ लिया अर रावजी आगै हाजर किया। रावजी लालैजी नैं बुलाया। लालैजी आय, रावल़जी सूं मुजरो कियो अर कवित्त सुणायो जिणरो भाव ओ हो कै अबै जितरी जमीन महाभड़ लूणकरण जीती है बा सगल़ी बामणां नै दान करदी जावै। छप्पय री छेहली ओल़ियां –

*खुर रवद खैंग खेहां रमण ,घड़सीसर घोड़ा घणा।*
*धर देह परी नवगढ धिणी ,बांवल़ियाल़ी बांभणां।।*

लालैजी एक गीत ई रावल़जी नैं सुणायो। जिणरो एक अंतरो –

*देद कुवधचो भेद दाखियो*
*झूठो कियो कवि सूं झोड़।*
*मेहडू तणै बोल रै माथै*
*रातैगढ आयो राठौड़।।*

रावल़जी लचकाणा पड़ग्या। छेवट लालैजी रै कैणै सूं दोनां नरेशां बिचाल़ै संधी होई अर इण संधी में रावजी रै दो कंवरां नै रावल़ देवीदासजी आपरी बेटियां परणाई। सेना रो खरचो ई भरियो।

~~गिरधर दान रतनू “दासोडी”

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