वर्षा नी राह जोतो मोरलो.....
कंईक विरह नी आग मां.....
प्रजळी रह्यो छे......
समय नां एंधाण एनी प्रतिक्षा नी पांख ने कोरी खाय छे....
भेखड अने धार भरखवा माटे धाय छे....
सूको पवन वादळ दूर-दूर सुधी न होवानी चाडी खाय छे,
ए शुष्कता नी दीवासऴी विरह नी ज्वाळा पेटावे छे.....
वड नां दांतण वीणवा आवेल देवीपूजक नी होंकली मांथी नीकळतो धूमाडो सहेज-सहेज मोरला नां आषाढी अंग ने थथरावे छे..... गळे डूमो बाज्यो होय तेम रूंधायेला विरह गीत छलकवा माटे तलपापड थई रह्या छे...
त्यारे एक नि:श्वास् मांथी निकळता मल्हारनां मालमी मत्त मयूर नां नत मस्तके उद्गार.....
निल वांसळी कंठ नी,
विरहे घूंट्या राग |
बुंद बुजावो प्रेम थी ,
आ अलबेला नी आग ||
- आनंद महेशदान महेडू |
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