कुल देवी श्री चाळराय के श्री चरणों में
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चरण मोहि राखो चालकनेज,
शरण तव छोरु जी हमेश।। टेर।।
विविध वृद ज्यूंही मो धारो,
चरण रो दीज्यो माँ सहारो।
कुपात्र जाण कर काँई,
मात न पूत मन मारयो।
उबारो आप रो जन देख,
चरण मोहि राखो चालकनेज ।।१।।
मति गति तू ही महामाई,
सकल संसार सकलाई।
विपत में याद तू आई,
बुद्धि दी पहले भरमाई।
दाता आप दो मो देश,
चरण मोहि राखो चालकनेज
।।२।।
ध्यान दो ग्यान दो धाता,
विमल जस की तू उपजाता।
सकल संसार की सरनी,
त्रिविध जग ताप की तरनी।
करम गति रेख को ना देख,
चरण मोहि राखो चालकनेज।।३।।
भणे "देव" ज्ञान भिखारी,
जता सह सिक्षा जगवारी।
महड़ू कुल की महतारी,
चरण थिर आ पड्यो थारी।
जनम के दोस को ना देख,
चरण मोहि राखो चालकनेज।। ४।।
रचित
देवराज सिंह जाड़ावत
ठिकरिया कविराय
बूंदी
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