. हीगळाज माताजीनों छपय
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खप्पर गयु खोवाई के (तारी) साथ कोई बाई न सुंडी
सुर गयु संताय के भांग आरोगाई भेंकुडी
घणी उघ घेराई के खेराई करन मां
त्रुटे गयो त्रीसुळ के वाघ छुयेगयो वनमां
कोयला तणी दल थई कठण के ताप कळु लाग्यो तुही
कयव का कान कहे डुढी कठे हे हीगळाज बुढढी हुई.
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रचीयता:- कानदासजी महेडु, सामरखा.
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