बहुत से भाइयों को, विशेष कर नवयुवक मेहड़ू भाइयों को यह क्रमवार जानकारी हो या न हो,, लेकिन तथ्यों की गहराई और इतिहास एवं इस कुल के बही भाटों के साक्ष्य पूर्वक अध्ययनों से यह प्रमाणिक और प्रमाणित होता है कि मेड़वा जो कि मेहड़ू जी केशरिया ने बसाया था, यहाँ से एक नई शाखा मेहड़ू अस्तित्व में आई, कालान्तर में समयानुसार लोग पलायन करते गये मेड़वा से कुछ लोग बीकानेर चुरू सीकर तक चले गए, कुछ लोग पारकर जो कि पशु पालन और पानी के लिए सुरक्षित स्थान कहा जाता था, उस तरफ चले गए, पारकर से समय समय पर लोग काठियावाड़ और सौरास्ठ की तरफ गये, मेहड़ू जाति को प्रसिद्धि और पद काठियावाड़ में सबसे ज्यादा मिले, लूनपाल जी, गोदड जी, लांगी दास जी, और वजमाल जी ने बहुत ख्याति पाई, महाराणा उदय सिंह की एक शादी ध्रांगधरा के झाला राजपूतों में हुई थी, इस क्रम में हमारे पूर्वजों का राजा महाराजाओं के साथ मेवाड़ में आना जाना रहा, यहाँ मेवाड़ में और ईडर में भी मेहड़ू का निवास स्थान हो गया,, आगे चल कर महाकर्ण जी मेहड़ू बाड़ी से सरस्या और महाकवि महा दान जी को मारवाड़ में भी जागीरी प्राप्त हुई, इस प्रकार हमारी जनसँख्या का अधिकांश भाग पारकर और काठियावाड़ में पाया जाता है, राजस्थान में खारी को छोड़ कर बाकि सब छोटे छोटे गाँव है ।पारकर में मेहड़ू की एक समय सबसे ज्यादा आबादी थी इसमें गढ़ समोवड़ गूंगड़ी, उंडेर राठी और डीनसी, मेहड़ू शाखा के बड़े बड़े गाँव थे, पर धीरे धीरे लोग काठियावाड़ चले गए,, उसका मुख्य कारण पारकर के सोढा राजपूतो और काठियावाड़ के राजपूतों के बीच अधिकांश रिस्तेदारी का होना।सबसे पहले डिनशी से कवि श्री डूंगरसी मेहड़ू जी का परिवार गया था, उनको देगाम की जागीरी मिली थी, फिर क्रम बढ़ता ही गया, इस प्रकार हमें मालूम होना चाहिए कि सौरास्ठ, काठियावाड़ ईडर मारवाड़ में ही मेहड़ू शाखा का निवास स्थान है,, 1971 और विभाजन के समय पारकर से पूरे मेहड़ू पलायन कर गए है, किसी समय में पारकर mehduo की शक्ति और सत्ता का केंद्र रहा आज मेहड़ू विहीन है, आज इतना ही, फिर इतिहास पर बातें करते रहेंगे,, जय माँ चालकनेची जी
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Jay mogal bhai. Abhinandan
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