कविस्वर वृजमालजी महेडु रचित विभा विलास के दुहे चैत्री अष्टमी नवरात्री के दीन स्मरण करे
करनि करुना करनजे। वरनि वेद विसेश ।।
मोकुं सोवर दीजिये । वरनो जाम विभेश ।।
शिवा सुलखमी सारदा । सरजण धरन संसार ।।
त्रसकत हरणी ताप त्रे । त्रगुणातम जगतार ।।
त्रगुण सरूपी ते रमे । व्यापक घटघट वेश ।।
जल थल इंड आकाशमें । अकल रूप आदेश ।।
ब्रह्मा विसन महेश वे । पार न कोइ पाय ।।
तोरी गत जांणे तुंही । महासकत महामाय ।।
आसापुरा उमया क्षिृया । करिये मुज कृपाह ।।
जदु वंसी जस जांणवा । इंछूं मन उच्छाह ।।
गोकल वस गोकुल पति । अकल ईश अवतार ।।
जनम लियो वसुदेव घर । भोमी उतारन भार
कहु चरित सब कृष्णके । बाढ़े गृंथ पृमान ।।बरनी सुछम बातसो । जया मति अनुमान ।।
वृजमालजी महेडु
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