महकरण जी महेडु ( जड्डा चारण )
महेडु साखा का नामकरण मेडवा गाव पर प्रसिद्ध हुआ माना जाता है।
महेडु केसरिया महियारियां सहित तेरह साखाओ का विवरण मिलता है।
इस साखा के गाव सरस्या, बाड़ी, देवरी, खेरी, सचयी, सालियां, एवं कोकलगढ़ है। महेडु साखा में कवीवर मेहकरणजी, कानदासजी, लागीदानजी, वजमालजी जैसे कवी हुए । इसमें सबसे ज्यादा प्रभावसाली एवं काव्य प्रतिभा से यस कीर्ति महेकरणजी महेडु को प्राप्त हुई।
ये मूलतः सरस्या ( तह: जहाजपुर, भीलवाड़ा ) के रहने वाले थे। इनको काव्य प्रतिभा पर अकबर बादशाह भी मुग्ध थे। शरीर से भारी होने से ये जाडा चारण नाम से विख्यात हुए। तथा इनके वंसज जाडावत / महेडु कहलाने लगे। अकबर बादशाह के दरबार में प्रथम भेट में ही इन्होंने अपने भारी शरीर होने से उठ कर नजराना करने के विषय में अपनी असमर्थता प्रकट कर दी। इस पर इनको बैठे बैठे ताजीम देने का अधिकार दिया गया। अकबर के नवरत्नों में से एक वजीर खानखाना मिर्जा अब्दुल रहीम ने इनकी विध्वता पर मुग्ध होकर ये दोहा कहा-
धर जड्डा अम्बर जड्डा जड्डा चारण जॉय।
जड्डा नाम अल्लाहरा अवर न जड्डा कोय।।
गोरधनदान महेडु साता
9462984085
0 comments:
Post a Comment