Friday, 12 April 2019

मेरे पड़ दादा स्वर्गीय क्रांतिकारी श्री अजित सिंह जी गेलवा मेरोप को किया सम्मानित

मेरे पड़ दादा स्वर्गीय क्रांतिकारी श्री अजित सिंह जी गेलवा मेरोप को किया सम्मानित,
#26jan को सोनलधाम मढडा जूनागढ़ में भजनान्दी फ़ाउंडेशन द्रारा आयोजित भव्य चारण शक्क्ति दर्शन प्रोग्राम में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के सभी चारण शाहिद क्रांतिकारियो के परिवार जन एवं उनके वंशजों को सम्मानित किया ,
मुजे बड़ा  गौरवान्वित महसूस हुआ की मेरे पड़ दादा स्वर्गीय क्रांतिकारी राजकवि श्री अजित सिंह जी गेलवा ने 1857 की स्वतंत्रता संग्राम में अपना अमूल्य योगदान दिया और उनके पड़ पोते होने के नाते इस समान को रिसीव करना मेरे लिए बड़ा सोभाग्य ओर आनंद एवं गर्व की बात है, मेरे पूरे  गेलवा परिवार के लिए गौरव ओर सम्मान का समय है,
1857 की क्रांति में डुंगरपुर  मेरोप के स्वर्गीय क्रांतिकारी अजीत सिंह गेलवा को गुजरात  के सोनालधाम मढडा जूनागढ़ में भजनान्दी फ़ाउंडेशन द्रारा आयोजित भव्य चारण शक्क्ति दर्शन आयोजन में किया  सम्मानित ।
डुंगरपुर । 1857 की क्रांति में राजस्थान का अमूल्य योगदान था । वीर तांत्याटोपे को राजस्थान के शेखावाटी में प्रथ्वी सिंह सामोर ने शरण दी थी , उस वक्त बांकीदास आसिया शंकरदान सामोर ने पूरे राजपुताना को अंग्रेजों के विरुद्ध खड़ा करने में जोर लगाया।
इसी कड़ी में वर्तमान राजस्थान बोर्डर पर  गुजरात के पंचमहल जिले के कई रजवाड़ों को शस्त्र उठाने को प्रेरित किया कानदास मेहडू व अजित सिंह गेलवा ने।
इतिहास आज उन वीरों के त्याग बलिदान व अदम्य शौर्य को भूला चुका है पर अभी पिछले दिनों गुजरात सरकार ने भव्य स्तर पर आयोजन किया जिसमें इन महापुरुषों को स्मरण किया गया।
डुंगरपुर के धम्बोला के निकट मेरोप गांव में आज भी इनके वंशज इन्हें श्रद्धा से याद करते हैं।ब्रिटिश सरकार ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता के बाद तुरंत हिंदुस्तान में हथियार पर पाबंदी लगा दी और उनके लिए अलग कानून बनाया। इसकी वजह से क्षत्रियों को हथियार छोड़ने पड़े। इस वक्त लूणावाड़ा के राजकवि अजित सिंह गेलवा ने पंचमहल के क्षत्रियों को एकत्र करके उनको हथियारबंधी कानून का विरोध करने के लिए प्रेरित किया। सब लूणावाड़ा की राज कचहरी में खुल्ली तलवारों के साथ पहुँचे। मगर ब्रिटिश केप्टन के साथ निगाहें मिलते ही सबने अपने शस्त्र छोड़ दिए और मस्तक झुका लिए। सिर्फ़ एक अजित सिंह ने अपनी तलवार नहीं छोड़ी। ब्रिटिश केप्टन आग बबूला हो उठा और उसने अजित सिंह को क़ैद करने का आदेश दिया। मगर अजित सिंह को गिरफ़्तार करने का साहस किसी ने किया नहीं और खुल्ली तलवार लेकर अजित सिंह कचहरी से निकल गए; ब्रितानियों ने उसका गाँव गोकुलपुरा ज़ब्त कर लिया और गिरफ़्तारी से बचने के लिए अजित सिंह को गुजरात छोड़ना पड़ा। इसके बाद इनको डुंगरपुर के महारावल ने धम्बोला के निकट मेरोप गांव जागीर मै दिया  व मदद की ।इनकी वीरता से प्रभावित कोई कवि ने यथार्थ ही कहा है कि-
"मरूधर जोयो मालवो, आयो नजर अजित;
गोकुलपुरियां गेलवा, थारी राजा हुंडी रीत"
कानदास महेडु एवं अजित सिंह गेलवाने साथ मिलकर पंचमहाल के क्षत्रियों और वनवासियों को स्वातंत्र्य संग्राम में जोड़ा था। इनकी इच्छा तो यह थी कि सशस्त्र क्रांति करके ब्रितानियों को परास्त किया जाए। इन्होंने क्षत्रिय और वनवासी समाज को संगठित करके कुछ सैनिकों को राजस्थान से बुलाया था। हरदासपुर के पास उन क्रांतिकारी सैनिकों का एक दस्ता पहुँचा था। उन्होंने रात को लूणावाड़ा के क़िले पर आक्रमण भी किया, मगर अपरिचित माहौल होने से वह सफल न हुई। मगर वनवासी प्रजा को जिस तरह से उन्होंने स्वतंत्रता के लिए मर मिटने लिए प्रेरित किया उस ज्वाला को बुझाने में ब्रितानियों को बड़ी कठिनाई हुई। वर्षो तक यह आग प्रज्जवलित रही।
regards
पंकज सिंह s/o निर्मल सिंह s/o लक्ष्मण सिंह s/o राम सिंह s/o अजित सिंह गेलवा
ठि. मेरोप राजस्थान,
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माता चामुंडा का त्रिभंगी छंद

माता चामुंडा का त्रिभंगी छंद
कवि दुला भाया "काग"
॥दोहा॥
चंड मुण्ड मारण सगत, वारण धर विकराळ।
कोप खडग धारण करी, कारण असुरां काळ॥1॥
॥छंद त्रिभंगी॥
कर रुप कराळं, नहद नताळं, भगतां भाळं, विकराळं।
डं डाक डमाळं, कोप कमाळं, बाज बताळं, पडताळं।
खटके ललखाळं, जोम भुजाळं, त्रोडण ताळं तिण तुंण्डा।
खडगां धरखंडा, असुर उतंडा, भय भ्रेकुण्डा, चामुण्डा।
जिय चोटीला री चामुंडा जय सुंधा वाळी चामुण्डा॥ 1 ॥
कोपां नभ कडकत, धरणि धडकत, खड्गां खडकत, भड भडकं।
रुंड मेखां रडकत, मेर सु म्रडकत, थडडड थडकत, अस अरकं।
फेंफड सुर फडकत, गोतल गडकत, भय भ्रत अण भत झर झुंडां।
खडगां धरखंडा, असुर उतंडा, भय भ्रेकुण्डा, चामुण्डा।
जिय चोटीला री चामुंडा जय सुंधा वाळी चामुण्डा॥ 2 ॥
मचियो रणमट घट, हाँकल हट हट, मदछक रमझट, लेत मया।
खडगें धर खळखट, पडधर प्राछट, बोंभल आसुर तब धखिया।
वळिया सुर वटजट, करडत कट कट, ताकट त्रटघट, भुजदंडा।
खडगां धरखंडा, असुर उतंडा, भय भ्रेकुण्डा, चामुण्डा।
जिय चोटीला री चामुंडा जय सुंधा वाळी चामुण्डा॥ 3॥
रण पड लग रकझक, हयदळ हकबक, देतां दकमक, ले खडगां।
समरें थइ सकमक, कोप सकत कक, रुण्ड मुण्ड फगवत देव डगां।
धद रगदळ धकधक, भरत अमख भख, भासत भखभख, भरकुंडा।
खडगां धरखंडा, असुर उतंडा, भय भ्रेकुण्डा, चामुण्डा।
जिय चोटीला री चामुंडा जय सुंधा वाळी चामुण्डा॥ 4॥
धर धोमस धर धर, चंड असुर सर, व्योम अफर फर, फोड धखै।
थडडत हर थरथर, भरत अभर भर, भाखत हरहर, भरु मुखै।
दकळं अरि डरडर, भै पद भरभर, ज्वाळ त्रशूळ जर, भुमंडा।
खडगां धरखंडा, असुर उतंडा, भय भ्रेकुण्डा, चामुण्डा।
जिय चोटीला री चामुंडा जय सुंधा वाळी चामुण्डा॥ 5॥
भेंकर भुडंड, त्रुटत मुंडड, दधियळ माटड फूट जिसा।
असमांण सु उडअत, गडडड गुडअत, कवरां कुदत, धू धडसा।
तव त्रोडत आंतड, भरखत भेजड, कडकड डाढड, जमडढ्ढां।
खडगां धरखंडा, असुर उतंडा, भय भ्रेकुण्डा, चामुण्डा।
जिय चोटीला री चामुंडा जय सुंधा वाळी चामुण्डा॥ 6 ॥
गाढां मुख गडगड, पाड अपड पड, ले धर जड पड दैत मळै।
अडपाड अवड चड, आंकश अरियड,तेशर खागड, मांड गळै।
जोधड असि जडडड,रगदळ दडडड, धड हड रड वड, रिण रुण्डां।
खडगां धरखंडा, असुर उतंडा, भय भ्रेकुण्डा, चामुण्डा।
जिय चोटीला री चामुंडा जय सुंधा वाळी चामुण्डा॥ 7॥
पड ढांह असुर पट, हांकल हट हट, त्रोड अत्रड त्रट, काळ जडं।
धूंसा बज धिधिकट, पण घर प्राछट, बेशक अरियट, धर धजडं।
सो वळदळ संकट,”काग”अकट कट, थाप सिंहण थट, द्वीतुण्डा।
खडगां धरखंडा, असुर उतंडा, भय भ्रेकुण्डा, चामुण्डा।
जिय चोटीला री चामुंडा जय सुंधा वाळी चामुण्डा॥ 8॥
॥छप्पय॥
छूट कुलीश गय शक्र, वक्र ईंदु धर ईकवक।
धरनि धमम धरकंति, कमठ फनि रुदन शुकर धक।
उडुगन गन तज अर्श, दर्श रन रन घर दरसत।
सकल प्रभंजन चलत, वृद्धि धर पर धन वरसत।
भर गयो घोर रव भूमि नभ, आफताब श्रीहत अडर।
चंडी सु कोप कर असुर सर, धोम निकर कर खडग धर॥ 1 ॥
गयंद दिग्गज डर गये, नचत हर हर कर निरबल।
गो लच्चक चल गई, वितल हिल गये तलातल।
गिरिगण खळभळ गये, मुण्ड चल गये व्योम तल।
अढल सुभट ढल गये, हुवै अनचल दधि हलबल।
कलमलत चराचर कोप से, भट्ट थट्ट मन मोद धर।
चंडी सु कोप कर असुर सर, धोम निकर कर खडग धर॥ 2॥
घोर नाद भो घट्ट, थट्ट भय असुर सु थर थर।
रमणि सुर जट रट्ट, हट्ट धर वट्ट इष्ट हर।
लोह खडग कस लट्ट, खट्ट द्वादश कोटि खस।
तुण्ड अगन रन तट्ट, हट्ट भीरु भट मुनि हस।
कथ काग पंच कंपन लगै, हरि बिरंचि अरु चकित हर।
चंडी सु कोप कर असुर सर, धोम निकर कर खडग धर॥ 3॥
अचल ध्रुव डिग गये, मिहिर डिग गये छदिन मग।
गोतल फनि जग गये, गगन मंडळ भय डगमग।
गोवर शम डग गये, महल पर गये धरती पर।
गिरधर पड जग गये, थिर नंह होवन थर थर।
हर गिरि श्वसुर गिरिहर हलत, अंबर जळ चळ गई अधर।
चंडी सु कोप कर असुर सर, धोम निकर कर खडग धर॥ 4॥
चकवकित गन असुर, चकित थर थरत चराचर।
थंभ भूमि भय थकित, लोल जळ सायर लर थर।
वात करत नंह वहन, जंप गय सकळ तटनि जळ।
विबुध वृन्द भय विकल, मेरु गिरि भये सु खळभळ।
ब्रहमांड अंड हल बल विपुल, झुंड झुंड नर फेलि जर।
चामुंड रक्त भय मुण्ड सर, करन खंड असि तोल कर॥ 5॥
कुटिल भ्रोंह करि कोप, जगत जननि जब जुट्टीय।
बदन रक्त बैराट, गगन मंडळ तब कुट्टीय।
अवनि व्योम आकाश, प्रबळ भुजबळ वपु पुरिय।
खंड खंड खळ निकर, द्वीजपति ग्रह सब दुरिय।
भुजदंड वृंद दिग भर गये, हतबळ भय निशिचर हहर।
चामुंड रक्त भय मुण्ड सर, करन खंड असि तोल कर॥ 6॥
कडड दंत कडकडत, खपर अनहड रन खडडत।
जडधर गण जडपडत, गडड भेंकारव गडडत।
लचकत थिर लडथडत, हडड धख धख नद हालत ।
कुंदक इव दडवडत, हलक धडडड पड हुसकत।
हसमसत तबक नारद हसत, धरनि रसातल जाति धंस।
चामुंड मचक पद मुण्ड शिर, कडक घाव किय दंत कस ॥ 7॥
~~कवि दुला भाया “काग”
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सेजकसिंहजी गोहिल द्वारा धनराज महेडू किं प्रशस्ति में लिखा गया गीत  | ई. स. १२६०

गलमाल थीये छोगाला गढ़वी
वाचा बल वाळाय वमल
रज रज रखी करें रोशाळा
काळा मूंछाळाय कमल|

*- सेजकसिंहजी गोहिल द्वारा धनराज महेडू किं प्रशस्ति में लिखा गया गीत  | ई. स. १२६० 🙏🌻*

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आदरणीय ईश्वर दान जी भाई...- आसुदानजी मेहड़ु

आदरणीय ईश्वर दान जी भाई...
आ घणा बधा दोहा अने सोरठा
रावलदेवो ना कहेला छे...कालींजर, कालुझर एकज नाम नगरपारकर टाऊंन जेना पड़खे वसेलो हतो ते...ड़ूगर कालींजर पारकर नी ओलखाण,
गर्व अने छेवटे सोढाओए शरण पण कालींजर मां ज लिधी हती।
कहावत छे..." कालींजर मां सवा सेर सोनो उपजे... एटले मध, गूगल तथा वांनकी वांनकी ना वृक्षो जेने आपणे सागवान थी वधारे गणियें तोय खोटो नहीं एवी
वनस्पती ए सिवाय जे पत्थर छे ए तो एवो ग्रेनाइट छे जेवो दुनिया मा शायद ज हशे...माटे कालींजर एक आइडिन्टिफिकेशन छे पारीनगर पारकर नी ...एक "लोगो" एक सिम्बल....एक साचो गर्व ।। हवे पारकर नाम जे थपाणो एनी पाछल हकीकत आ छे ।
    थल अने पारकर बे भाग ।
1. थल....( जे धरती नो भाग रेतीलो.. धोरा वालो..उबड़खाबड़
टोपोग्राफी डाइसेक्टेड टाईप नो छे ते भाग थल कहेवाणो...कहेवाय छे...आ भाग आपणे धाट कहिए छिए ।
2. जे भाग थल थी दक्षिण दिशा कच्छ रण तरफ छे ते समतल अने सरखो भाग छे.. .ते पारकर कहेवाणो । ज्यारे आवड़जी आई हाकड़ो पीधो समुंदर सुकावयुं त्यार बाद हाकड़ा निचे जे  पृथ्वी नो भाग हतो ते पाणी ने लहरो ने कारणे एवुं बनेलो देखाणो...अने अमुमन नदी नाला ज्यारे सुकाई जाय त्यारे आपणे देखता पण होइये छिये । ए प्रमाणे भुगोलिक परिवर्तन कारणे थयुं ।।बीजुं... घणा वर्षो पेलां थल धरती दुकानो बहु ओछी हती
जीवन जरूरत नी वस्तुओ सहजे मलती न हती एटले ऊंठो ऊपर व्यापार चलतो...ऊंठो ने नी कतारो काफिला गढड़ा रोड थी चालता अने हारीज पाटण थी चोखा, घ्ऊं, पतरा ओरडा़ बनावा माटे अने करियाणा नो सामान लावी थल....पारकर मा वेचता ।
हवे धोरा धरती ने पार करी ने कच्छ रण मां थ्ई हारीज जता ।
एटले नाम पाड़यो....थल...पार..कर==थरपारकर या थार पारकर ।।
सूफी शायर अब्दुल लतीफ भिटाई पण पोताना " शाह भिटाई जो रिसालो " पुस्तक मा पण वर्णन करयुं छे ।।
थर वठो, भर वठो, वठो मींह् गडा़
पोयांरी जो पट्न में, चूंगारिन चडा़
कादर भंञ़ज कड़ा, त मारुअन मिले मारुई ।।
भावार्थ:--भिटाई कहता है बारिश मे थर वाले भाग मे ओर भर यानी समतल धरती वाले भाग पारकर मे आज जोरदार बारिश हुई है बड़े बड़े ओले गिरे है. .आज मारुई तेरे थर को बारिश ने तरबतर कर दिया है खुश हो जा ।
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चाळकनेची आवङ वंदना**

**चाळकनेची आवङ वंदना**
*बाढाणे बङ देस में,चाळकनो इक गाम।
धोरा धूणी तापता,आवङ माँ रो धाम।।1।।
*कैर कंकैङी बोरङी,खैजङ जाळ वणीह।
आवङ मावङ चारणी,धोरा धाप धणीह।।2।।
*सिन्ध में रहता साहुवा,कुळ चारण कविराय।
मांड बसाई मावङी,थळवट धोरा मांय।।3।।
मादा रा सुत मामङा,सगत भगत हिंगळाय।
सगत पीढ हद सांतरो,सिन्ध बलुचा मांय।।4।।
*बंड सेठ इक बांठियो,मामङ मोसो दीन।
पुत्र विहुणा पांपळा,कांई करणो जीण।।5।।
*भरम भगत रा राखजो,लिजिय राखो मात।
सात फैरा दूं सांवठा,हिंगलाज रे जात।।6।।
*माता मन ममता घणी,मात सुणी आ बात।
इक देवूंला डीकरो,धीवङिया दूं सात।।7।।
*मामङ साहुवा मांड रा,आवङ माँ घर आय।
*मोहवरती मेहङु चारणी,गोद खिलावे माय*।।8।।
*विकरम संवत विचारणा,अठ सौ ऊपर आठ।।
चेत सुदा मंगळ नमी,मात उतरिया धाट।।9।।
*चाळक दाणु चालियो,सिंध धरा सूं धाय।
सिर धङ सूं सळटावियो,आवङ मायङ आय।।10।।
*आवङ थारो आसरो,धोरा मांही धाम।
चाळकनेची चाव सूं,सिमरो आठू याम।।11।।
*चाळकनेची चानणो,थलिया धोरा मांय।
भगता थां सूं विणती,दरसण करियो आय।।12।।
*मनरंगथळ री मावङी,मनङो रंग दे मात।
भगती तो भरपूर दे,करले आत्मसात।।13।।
आवङ माँ आशीष दे, और न चहिये मोय।
दया हरदम दाखिये,दास ज हूं म्है तोय।।14।।
*चाळकनो चावो कियो,अम्बे मायङ आप।
मनरंगथळ मरुथळ सथल,जपै उदियो जाप।।15।।
रचयिता:-उदयराज खिलेरी अध्यापक राउमावि सेसावा
जालोर
9828751199

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